30 October 2010

हम तो हैं मुसाफिर....

हम तो हैं मुसाफिर अनजानी राहों के,
ख्वाब देख रहे हैं और चलते जा रहे हैं
पीछे क्या छूटा उसे भूल गए
जो आएगा आगे उसकी परवाह नहीं
होगा जो भी अच्छा तो क़ुबूल कर लेंगे
बुरा जो भी होगा तो झेल लेंगे
कहते तो सदियों से ये लोग आ रहे हैं
कागज़ की कश्ती पे चलते जा रहे हैं
मझधार में आकर तो सिर्फ
साहिल  की चाह में
हिचकोले खाती ज़िन्दगी
सिहरन और आह में
बे मुकम्मल है सब कुछ कि
क्या कहें क्या नहीं 
चौराहे पे खड़े हैं और सोचे जा रहे हैं
किस राह चलें कि ज़िन्दगी
हसीं लगने लगे
हम तो हैं मुसाफिर अनजानी राहों के
ख्वाब देख रहे हैं और बस चलते ही जा रहे हैं








(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

26 October 2010

वो चिड़िया अब नहीं चहकेगी.......

वो नाज़ुक सी कली
वो नन्हीं सी परी
जो हर पल मुस्कुराती थी
माँ के आँचल में
बाबुल के आँगन में
वो चिड़िया
अब नहीं चहकेगी
क्योंकि .......?????

23 October 2010

चलते चलना है.....

(फोटो साभार:गूगल)


ये जीवन है
चलते चलना है
हर राह पर
हर मोड़ पर
ढेरों ढलानों
पर फिसलते हुए
चढ़ाइयों पर चढ़ते हुए
हवा के रुख की तरफ कभी
कभी हवा को धकेलते हुए
बस चलना है
चलते चलना है.......
बहते आंसुओं को पीते हुए
हँसते हुए
दौड़ते हुए
काँटों पर चलते हुए
आग उगलती ज़मीं पर चल कर
कभी यूँ ही ठिठुरते हुए
मीलों दूर
चलना है
चलते चलना है
ठोकरें खानी है
उठना है
संभलना है
नहीं तनिक विश्राम इस पर 
ये जंग ए  ज़िन्दगी की राह है
चलना है
बस चलते चलना है
निरंतर....


(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

20 October 2010

तुम्हारी तलाश में.

देख चुका हूँ
हर कहीं
तुम को
ढूंढ चुका हूँ
हर जगह-
पर तुम
कहीं नहीं हो
तो कहाँ हो तुम?
क्यों ये अक्स
तुमने छोड़ रखा
मानस पर
क्यों ये राग तुमने
छेड़ रखा
जीवन साज पर
ये कैसा आकर्षण
तुम्हारे प्रति
ये कैसा चिंतन
तुम्हारे प्रति
प्रति क्षण
तुम्हारे सामीप्य की आस में
भटक रहा हूँ
तुम्हारी तलाश में.


17 October 2010

मैं दीया हूँ.

Photo Curtsy:Google Images

जलता हूँ
रोशनी देता हूँ
दुनिया को
सब कुछ सहता हूँ मैं
मगर
विचलित नहीं होता हूँ
जलता रहता  हूँ
निरंतर
अंतिम सांस तक
मैं दीया हूँ
सब कुछ देता हूँ
सब को
मगर मुझे क्या मिलता है
मन में अंधेरी तन्हाई के सिवा
बाती पे ज़ख्मों के सिवा
और फिर रुसवाई के सिवा
लौ के बुझ जाने के बाद
साँसों के उखड जाने के बाद
मेरी यादें रह जाती हैं
मैं वर्तमान से भूत बन जाता हूँ
किसी कविता या कहानी में छप जाता हूँ
यही है मेरा जीवन
मैं दीया हूँ.


[इस कविता को आप सुन भी सकते हैं मेरी आवाज़ में..]






(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

14 October 2010

बचपन की यादें

हम भी कभी बच्चे थे
हँसते थे मुस्काते थे                                         
कभी लड़ते झगड़ते थे तो
कभी एक हो जाते थे

हाथी घोड़े भालू बन्दर
छुक छुक गाड़ी में बैठे अन्दर
सुन्दर गीत गाते थे

भेदभाव सब भूल हम
मिलजुल खाना खाते थे
एक दूसरे को गले लगा कर
मिल कर गाना गाते थे

वैसे दिन अब कहाँ
वैसी खुशी अब कहाँ
बस्ते में दब रहा है बचपन
वैसा सुकून अब कहाँ

वो बचपन की मीठी यादें
अब भी मन में आती हैं
ख्वाबों में सब सच हो जातीं
सुबह हो धुंधला जाती हैं

कभी न करते कोई बहाना
खुशी खुशी स्कूल को जाते थे
हम भी कभी बच्चे थे
हँसते थे मुस्काते थे.


(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

11 October 2010

मन का सूरज


ये जो सूरज है
उगते देखता हूँ जिसे
पहाड़ों के बीच से
पेड़ों की ओट से
ऊंची अट्टालिकाओं के
किसी कोने से
खिलते देखता हूँ
इसकी पहली किरण को

मगर आज
ये सूरज
उग आया है
मेरी हथेली के बीच से
शायद यहीं कहीं छिपा बैठा था
मेरे मन मस्तिष्क में
मैं  जिस को तलाश रहा था
वो मेरे भीतर ही था

मैं भटक रहा था
और वो हंस रहा था
मेरी मूर्खता  पर

मगर आज
मैं भूल चुका हूँ
दुनिया को
और समा चुका हूँ
मैं मिल चुका हूँ
इसी सूरज की
किरणों में कहीं
मैं खो चुका हूँ

लेकिन
भूला नहीं हूँ
अपना अतीत
मैं क्या था
और
क्या हो गया हूँ




किसी अनजान के लिए......

बहारों तुमसे एक तमन्ना है मेरी
मेरे जिस्म के कतरे कतरे पर उनका नाम लिख दो
और उन से कह दो कि
मैं बहुत प्यार करता हूँ  उनको.
वो आते हैं रोज़ ख्यालों में ख़्वाबों में
चूम कर चले जाते हैं मेरे अधरों को
मैं फैलाता हूँ अपनी बाहें
उन्हें समेटने को
मगर छिटक कर कहीं दूर चले जाते हैं वो
ए बहारों ज़रा उन से कह देना ये भी एक बात
जाने क्यों इतना सताया करते हैं वो...
बस यही एक  आखिरी  तमन्ना है ओ  बहारों
जिस राह से वो गुजरें  वहीँ पे बिछ जाया करूँ मैं.


(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

10 October 2010

उड़ना चाहता हूँ

(चित्र:साभार गूगल)

उड़ना चाहता  हूँ
दूर तलक
नीले आसमां में
छूना चाहता हूँ
ऊंचाइयों को


दुनिया से बेपरवाह
अपनी ही धुन में
खामोश आसमां
को गुंजा देना चाहता हूँ
अपनी आवाजों से

मैं उड़ना चाहता हूँ
जाना चाहता हूँ
देखना चाहता हूँ
क्षितिज के उस पार की
अनोखी दुनिया को

कर देना चाहता हूँ
अपने सारे सपनों को सच
मैं
उड़ना चाहता हूँ
दूर तलक
ज़मीं पे रहते हुए





(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

08 October 2010

युव चेत गया

(व्यक्तिगत रूप से मुझे इस कविता में कुछ कमियाँ नज़र आ रही हैं;फिरभी वर्ष 2005 में लिखी गयी इस कविता को आप के अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ-)  

आशा किरण हो गयी प्रकट,
युव चेत गया,युग चेतेगा
माँ भारती का,विजय शिखर  
विश्व देख रहा और देखेगा

युग-युग पूर्व का विश्व गुरु
स्वर्ण विहग बन कर चहकेगा
सृष्टि के उपवन में पुनः 
चेतना सुमन अब महकेगा

युव का नेतृत्व,युग की शक्ति
अतुल  मेधा और दिव्य दृष्टि
मुस्कुरा रही सकल प्रकृति
गुल महकेगा, युग देखेगा

युव ही है आधार युग का
युव-युगल पथ प्रदर्शक युग का
युव की असीमित ऊर्जा से
युग दमकेगा,युग देखेगा.

जागो विश्व के युवा समीर
तुम क्यों शांत?क्या कष्ट तुम्हें?
तेरे झोकों  से टकरा कर
हिम पिघलेगा,युग सिहरेगा

आशा किरण हो गयी प्रकट
युव चेत गया,युव देखेगा.



(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

05 October 2010

कोई तो है

कोई तो है हाँ देखो वो देखो
वो सामने
वो कोई तो है
जो खींच रहा है
अपनी ओर मुझे
मैं देख रहा हूँ बस उसी को
सब कुछ भूल  गया हूँ
दुनिया से अलग थलग
उसके मोह पाश में
मैं मुस्कुरा रहा हूँ
और वो भी
मुस्कुरा रहा है
मुझे देख रहा है
अपनी बाहें फैलाये
मुझे बुला रहा है
और
कह रहा है  मुझ से-
आ गले लग जा!


(जो मेरे मन ने कहा.....)

04 October 2010

मधुशाला

हाय क्यों छीन लिया तुमने
मुझ से मदिरा का प्याला
जिसको पीकर  क्षणिक भूलता
दुनिया का गड़बड़ झाला
एक पल की ये रंग रेलियाँ
फिर दो पल की तन्हाई है
तन्हाई में गले लगाती
मुझ को मेरी मधुशाला

(जो मेरे मन ने कहा.....)

02 October 2010

कल फिर तुझ को भुलाएँगे........

बापू तेरे देश में
हम तेरी बातें भूल गए
तू तो छप गया नोटों पे
हम काले धन में डूब गए

बस आज करेंगे तेरी बातें
खादी पहन चलेगा चरखा
ए.सी.मोटर में आके
हम तेरे गीत गाएंगे.

कल फिर तुझ को भुलाएँगे!

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(जो मेरे मन ने कहा.....)