कोयल की आवाज़ सुनी
वो कुहुक रही थी
आज अचानक
मेरे घर की बालकनी में
आकर
अंदर के कमरे में
बैठा मैं
चारों ओर घूमती
उसकी नज़रों को
भाँप रहा था
शायद वो
ढूंढ रही थी
सामने के
आम के पेड़ पर बना
अपना आशियाना
शायद वो
ढूंढ रही थी
उन बौरों को
जिनकी मंद मंद
खुशबू के बीच
वो गाती है
अपने राग
पर तभी
उसकी नज़रों ने देख ली
ज़मींदोज़ हो चुके
उस हरे भरे
आम के पेड़ की गति
और इंसान को
कोसती हुई
वो कोयल उड़ गयी
नये ठिकाने की
तलाश में !
(काल्पनिक )
वो कुहुक रही थी
आज अचानक
मेरे घर की बालकनी में
आकर
अंदर के कमरे में
बैठा मैं
चारों ओर घूमती
उसकी नज़रों को
भाँप रहा था
शायद वो
ढूंढ रही थी
सामने के
आम के पेड़ पर बना
अपना आशियाना
शायद वो
ढूंढ रही थी
उन बौरों को
जिनकी मंद मंद
खुशबू के बीच
वो गाती है
अपने राग
पर तभी
उसकी नज़रों ने देख ली
ज़मींदोज़ हो चुके
उस हरे भरे
आम के पेड़ की गति
और इंसान को
कोसती हुई
वो कोयल उड़ गयी
नये ठिकाने की
तलाश में !
(काल्पनिक )
बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई ...
ReplyDeletehar chdiya ko us jana hota hai ek din....
ReplyDeletebhaut hi badiya....
ReplyDeleteबहुत सुंदर......
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
कोयल का चमन उजड़ रहा है आजकल..
ReplyDeletekalamdaan
बहुत ही खुबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।
ReplyDeleteसार्थक शब्द संयोजन
ReplyDeleteक्या बात है बहुत बहुत प्यारी कविता .....खूबसूरत
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteमैं ब्लॉग जगत में नया हूँ मेरा मार्ग दर्शन करे !
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
आम के पेड़ की गति
ReplyDeleteऔर इंसान को
कोसती हुई
वो कोयल उड़ गयी
नये ठिकाने की
तलाश में !
कोयल तो नया ठिकाना ढूंढ़ ही लेगी .... !!
इंसान अपने अक्ल को कब ढूंढेगा .... ?
कोयल की बोली में आपने इंसान को एक बार फिर उसकी करनी याद दिला ही दी ...सच थोडीसी अहतियात से कितने आशियाने बच जाते ....मनुष्य अब भी चेत जाये तो गनीमत है ......! सुन्दर !!!
ReplyDeleteकाल्पनिक ही सही लेकिन दिल को तो छू गयी....
ReplyDeleteइसलिए आजकल कोयल गाती नहीं कुछ चीखती सी प्रतीत होती है... गहन भाव
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव संजोये है यशवंत..............
ReplyDeleteसंध्या जी शायद ठीक कह रही हैं ..कोयल आज कल गाती नहीं, चीखती है.....
बहुत सुंदर.
सस्नेह.
काल्पनिक होगा पर लग तो रहा है यथार्थ सा!
ReplyDeleteयही वस्तुस्थिति तो है वर्तमान में...
सुन्दर अभिव्यक्ति!
वाह ...बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteकाल्पनिक है...पर यथार्थ तो यही है|
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.
koyal hi kya chidiya, kabutar aadi sabhi isi tarah insaan ko koste honge....satya prakat karti sundar rachna
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ||
bhavuk kalpana,sundar prastuti..''manzil pas aayegi
ReplyDeleteइंसान को पता नहीं कि आम क्यों मीठे होते हैं और कोयल के स्वर क्यों मीठे होते हैं. केवल कोयल जानती है कि इन मिठासों के गीत गाने वाला इंसान इन मिठासों की रक्षा नहीं करता बल्कि उसे नष्ट करता है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteside effects of extreme urbanization !!
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता....विचारणीय भाव लिए .
ReplyDeleteसुन्दर कविता ...आभार
ReplyDeleteआज शुक्रवार
ReplyDeleteचर्चा मंच पर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||
charchamanch.blogspot.com
कोयल के माध्यम से गहन बात....खूब !!!!
ReplyDeleteखूबसूरत भाव समेटे एक प्यारी सी कविता .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत खूब ......आभर
ReplyDeleteभावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण...
ReplyDeleteशुभकामनायें.
आज कोयल को उड़ना पड़ा है...कल उस हँसा को भी उड़ना पड़ेगा जो तन रूपी वृक्ष में रहता है.
ReplyDeleteएक विचारणीय मुद्दे पर बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति........ यदि यही हाल रहा तो शायद ये कोयल की कूंक भी कहीं सुनने को इंसान तरस जाए!
ReplyDeleteअभी भी यदि जागरुकता नहीं आई तो कोयल की कूक मोबाइल की रिंग टोन बनकर रह जायेगी.
ReplyDeleteमार्मिक ! विकास के उपक्रम में मानव कितने प्राणियों का बसेरा छीन चुका है और यह विकास निर्विकार अपने कदम तेज़ई से बढाए जा रहा है।
ReplyDeleteसंवेदना से भरी सुंदर अभिव्यक्ति !
परिंदों का बसेरा छीनता इंसान और पंछियों का दुख ....अच्छी रचना
ReplyDelete