चौराहों पर अक्सर दिखते
हाथ फैलाए भूखे नंगे
इंसान से इंसान ही कहता
दूर हटो! रे! भिखमंगे
फिर भी हैं कुछ
जो खिला पिला कर
महंगाई में दया दिखाएँ
आजादी का जश्न मनाएँ ?
बचपन के दो गजब नजारे
दिखते अक्सर आते जाते
एक - स्कूल में पढ़ते लिखते
दूसरे- कूड़ा बीन सकुचाएँ
आजादी का जश्न मनाएँ ?
खत्म हुआ सब रिश्ता नाता
कोरोना दूरी बनवाता
ऐसे में कैसे कुछ मीठा
जब हो सबकुछ
खट्टा तीता।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
आपस में सब लड़ते जाएँ
आजादी का जश्न मनाएँ ?
निरपेक्षता के स्थायी भाव में
संविधान की आत्मा बसती
लेकिन 'नए भारत' में
बसा रहे हम कैसी बस्ती ?
मजदूर किसान की दुर्गति में
'अमृत' को कैसे 'वर्षाएँ '
आजादी का जश्न मनाएँ ?
माना हुए वर्ष पचहत्तर
सौ , दो सौ , और हजार भी होंगे
सब ऐसे चलता रहा तो
जाने कैसे कहां को होंगे
फिर क्यों सच को
भूल-भाल कर
आंख मूंद कर खुश हो जाएँ
आजादी का जश्न मनाएँ ?
-यशवन्त माथुर©