कितने ही शब्द हैं यहाँ
कुछ शांत
कुछ बोझिल से
उतर कर चले आते हैं
मन के किसी कोने से
कहने को
कुछ अनकही
सिमट कर कहीं छुप चुकीं
वो सारी
राज की बातें
जिनकी परतें
गर उधड़ गईं
तो बाकी न रहेगी
कालिख के आधार पर टिकी
छद्म पहचान
बस इसीलिए चाहता हूँ
कि अंतर्मुखी शब्द
बने रहें
अपनी सीमा के भीतर
क्योंकि मैं
परिधि से बाहर निकल कर
टूटने नहीं देना चाहता
नाजुक नींव पर टिकी
अपने अहं की दीवार।
12012021