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30 April 2023

बेटियाँ तो वो भी हैं ....

वो 
जो जहाजों में उड़ती हैं 
जंगों में भिड़ती हैं 
साहस के 
कीर्तिमान बनाकर 
हर मैदान को जीतती हैं ...
आज बैठी हैं 
पालथी मारकर 
अवशेष 
लोकतंत्र की देहरी पर, 
सिर्फ 
इस उम्मीद में 
कि 
हममें से कोई 
अगर जाग रहा हो ....
अपने कर्मों से 
अगर न भाग रहा हो ..
तो ऋचाओं , सूक्तों और श्लोकों 
की परिधि से बाहर निकल कर 
सिर्फ इतना मान ले 
और मन में ठान ले -
वो बेटियाँ किसी और की नहीं 
दंगलों की मिट्टी के हर कण की हैं 
देश के गौरवशाली हर क्षण की हैं 
लेकिन दुर्भाग्य! 
आँख पर काली  पट्टी बांधे 
हम 
नए भारत के लोग 
ले चुके हैं शपथ 
सिर्फ 
अन्याय के साथ की। 

-यशवन्त माथुर©
30042023

29 April 2023

किससे कहूँ...?

किससे कहूँ...? 
कि गुजरते वक़्त के किस्सों में, 
अपना हिस्सा मांगते-मांगते थक गया हूँ।  

किससे कहूँ...? 
कि अस्वीकृति को स्वीकार करते-करते, 
जिस राह चला था उससे भटक गया हूँ।

किससे कहूँ...? 
कि कभी गाँव था, अब शहर बनते-बनते 
गहरी नींव के अंधेरे में उजाले को तरस गया हूँ।  

किससे कहूँ...? 
कि आदम हूँ तो देखने में 
ज़माने ने जम के मारा, बेअदब हो गया हूँ। 

-यशवन्त माथुर©
29042023

09 April 2023

सुनो ......4

सुनो! एक तिहाई अप्रैल बीतने को है...  धूप अपने रंग दिखाने लगी है... बिल्कुल वैसे ही.... जैसे होली के बाद तुम पर भी चढ़ गया है..... बदली संगत का बदला हुआ रंग। 
तुमको पता हो या ना हो ...लेकिन ...मुझे हो चुका था पूर्वानुमान.... कि दूरियों के  नए बोए हुए बीज नहीं लेंगे... ज्यादा समय अपना रूप बदलने में। 
सुनो! जरा याद करो मेरे वो शब्द ....जब मैंने कहा था कि आज जैसा एक दिन आएगा..... और देखो! ...आ भी गया। 


-यशवन्त माथुर©
09042023
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