सोच रहा हूँ शुरू करूँ
आज से मैं भी गोरख धंधा
चार आँखें हों चढ़ी नाक पे
बोलूँ फिर भी खुद को अंधा
कैसा होगा ऐसा धंधा
जिसमें पैसा -रुपया होगा
अकल घुलेगी घुटी भांग संग
बाप बड़ा न भैया होगा
ऐसा धंधा चोखा होगा
जिसमे केवल धोखा होगा
एक भरेगा अपना झोला
लुट पिट रोना दूजा होगा
चार अक्षर चालीस छपेंगे
घट बढ़ गड़बड़ मोल भरेंगे
इस धंधे की माया ऐसी
मोल तोल मे झोल करेंगे
माफ करो मुझ से नहीं होगा
कैसे मन ने सोचा ऐसा
रूख सूख का गरूर है खुद को
नहीं चाहिये खोटा पैसा
गोरख धंधा,गोरख धंधा
अरबों का है मूरख धंधा
आज ऊंच कल नीच पड़ेगा
मंदा होगा जब ये धंधा
तब मत कहना मुझ को अंधा।
©यशवन्त माथुर©
आज से मैं भी गोरख धंधा
चार आँखें हों चढ़ी नाक पे
बोलूँ फिर भी खुद को अंधा
कैसा होगा ऐसा धंधा
जिसमें पैसा -रुपया होगा
अकल घुलेगी घुटी भांग संग
बाप बड़ा न भैया होगा
ऐसा धंधा चोखा होगा
जिसमे केवल धोखा होगा
एक भरेगा अपना झोला
लुट पिट रोना दूजा होगा
चार अक्षर चालीस छपेंगे
घट बढ़ गड़बड़ मोल भरेंगे
इस धंधे की माया ऐसी
मोल तोल मे झोल करेंगे
माफ करो मुझ से नहीं होगा
कैसे मन ने सोचा ऐसा
रूख सूख का गरूर है खुद को
नहीं चाहिये खोटा पैसा
गोरख धंधा,गोरख धंधा
अरबों का है मूरख धंधा
आज ऊंच कल नीच पड़ेगा
मंदा होगा जब ये धंधा
तब मत कहना मुझ को अंधा।
©यशवन्त माथुर©
लाजवाब रचना,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteRajpurohit Samaj!
पर पधारेँ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
bahut khoob likha hai aapne sach hai hridya ki uh-poh kuchh bhi kahe apne ko burai mein dhaalna asaan nahi.
ReplyDeleteshubhkamnayen
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeletesuperb....
ReplyDeleteसोच रहा हूँ शुरू करूँ
आज से मैं भी गोरख धंधा
चार आँखें हों चढ़ी नाक पे
बोलूँ फिर भी खुद को अंधा
ज़रूरत नहीं सोचने की....
यशवंत...अब तो शुरू हो जाएँ...!
माफ करो मुझ से नहीं होगा
ReplyDeleteकैसे मन ने सोचा ऐसा
रूख सूख का गरूर है खुद को
नहीं चाहिये खोटा पैसा
....बहुत सच कहा है....संतुष्टी सबसे बड़ा धन है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
नहीं भाई ,ऐसा मत करना | खूब लिखा है यशवंत तुमने |
ReplyDeleteसच कहा येसे धंधे से न तो बरकत होती है न ही मन को सकून मिलता है...बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बेहतरीन...इसे ही संस्कार कहते हैं...गोरखधंधा करना सम्भव नहीं|
ReplyDeleteसटीक , स्पष्ट विचार
ReplyDeleteशुरू की पंक्तियाँ पढ़ कर लग रहा था ये आप किधर चल दिये ,बाद में -
ReplyDelete'माफ करो मुझ से नहीं होगा
कैसे मन ने सोचा ऐसा'
- ने बता दिया आप बिलकुल ठीक-ठाक हैं .
कुशल बनी रहे !
*चार अक्षर चालीस छपेंगे
ReplyDeleteघट बढ़ गड़बड़ मोल भरेंगे
इस धंधे की माया ऐसी
मोल तोल मे झोल करेंगे*
पढ़ कर कुछ सोच में ही थी कि
*गोरख धंधा,गोरख धंधा
अरबों का है मूरख धंधा
आज ऊंच कल नीच पड़ेगा
मंदा होगा जब ये धंधा*
संतोष हुआ .... !! समय के साथ नहीं बदलना ..... !!
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteअरे नहीं बाबा....
ReplyDeleteदूर ही रहने में भलाई है गोरख धंधों से...
सस्नेह
जय हो महाराज ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कहीं छुट्टियाँ ... छुट्टी न कर दें ... ज़रा गौर करें - ब्लॉग बुलेटिन
सच में-तुमसे नहीं हो पायेगा......सबके बस की बात नहीं यह गोरख धंधा...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.......सटीक, सार्थक और सामयिक पोस्ट........
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.......सटीक, सार्थक और सामयिक पोस्ट........
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन ।
ReplyDeleteसमयानुकूल प्रस्तुति...!
ReplyDeleteवाह रे गोरख धंदा ।
ReplyDelete.......प्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त और प्रभावशाली रचना है....
ReplyDeleteबुरे काम का बुरा नतीजा होता है
देर से ही सही फल तो भुगतना ही है....
जो गलत है वो गलत ही रहेगा.....भले ही वो क्षणिक लाभ प्रदान करता हो परन्तु दीर्घकालिक सन्तुष्टि नहीं प्रदान कर सकता
ReplyDeleteसुन्दर रचना यशवन्त भैया
यशवंत जी , ये गोरखधंधा आप जैसे सीधे सरल लोगों के लिए नहीं है ..... बढ़िया पोस्ट!
ReplyDeleteशानदार भावों से सजी पोस्ट।
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