यूं तो अक्सर
दिन और रात
कटते हैं
शोर में
फिर भी
भटकता है मन
कभी कभी
सन्नाटे की तलाश में
सन्नाटा
जो घोर अंधेरी रातों में
साथ साथ चलता है
सन्नाटा
जो डर और दहशत के पलों मे
बोलता है
काँपते होठों की जुबां
सन्नाटा
जो हवा मे तैरते
शास्त्रीय स्वरों और रागों की
छिड़ी तान के साथ
बंद आँखों और खुले कानों को
सुकून देता है
वो सन्नाटा
वो बोलती खामोशी
और फिजाँ मे महकती
रात की रानी*
बीते दौर की कहानी
बन कर
अब कहीं खो चुकी है
चीखते राज मार्गों के
मर्मांतक शोर मे
भोर से
भोर के होने तक।
----
*रात की रानी एक फूल होता है
©यशवन्त माथुर©
दिन और रात
कटते हैं
शोर में
फिर भी
भटकता है मन
कभी कभी
सन्नाटे की तलाश में
सन्नाटा
जो घोर अंधेरी रातों में
साथ साथ चलता है
सन्नाटा
जो डर और दहशत के पलों मे
बोलता है
काँपते होठों की जुबां
सन्नाटा
जो हवा मे तैरते
शास्त्रीय स्वरों और रागों की
छिड़ी तान के साथ
बंद आँखों और खुले कानों को
सुकून देता है
वो सन्नाटा
वो बोलती खामोशी
और फिजाँ मे महकती
रात की रानी*
बीते दौर की कहानी
बन कर
अब कहीं खो चुकी है
चीखते राज मार्गों के
मर्मांतक शोर मे
भोर से
भोर के होने तक।
----
*रात की रानी एक फूल होता है
©यशवन्त माथुर©
बहुत सुंदर रचना ... कभी कभी मन सन्नाटे के लिए भी बेचैन हो जाता है ....
ReplyDeleteरात की रानी हारसिंगार नहीं होता ... वो अलग फूल है.... बाकी जानकार लोग बताएँगे :):)
बहुत बहुत धन्यवाद आंटी....मैं थोड़ा कनफ्यूज़ था कि रात की रानी हर सिंगार को कहा जाता है। मैंने पोस्ट को एडिट कर के "रात की रानी एक फूल होता है" लिख दिया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना यशवंत
ReplyDeleteगहन भाव हैं कविता में.....
सस्नेह
अनु
ई मेल से प्राप्त टिप्पणी -
ReplyDeleteविभा रानी श्रीवास्तव
रात की रानी के पेड़ की डाली पतली-पतली लत्तर जैसी होती है और फूल एकदम
सफेद और थोड़ा लम्बा होता है, उसमें खुशबू बहुत होती है ,शाम होते खिलने
लगता है पर देवताओं पर नहीं चढ़ाया जाता और हरसिंगार का बड़ा वृक्ष होता है
और वो सुबह लगभग 4 बजे खिलता और सुबह होते-होते झड़ जाता है ,उसका फूल
सफेद-गोल होता है लेकिन बीच में बैगनी रंग होता है पहले उससे कपड़ें रंगने
के लिए रंग भी तैयार किये जाते थे वो देवताओं पर भी चढ़ता है एक ऐसा फूल जो
नीचे गिरा हो तो भी चढ़ाया जा सकता है पेड़ के नीचे गोबर-मिट्टी से लीप कर
साफ जगह बना दिया जाता है !!
इतनी अच्छी जानकारी देने के लिये आपका धन्यवाद आंटी!
ReplyDeleteवो सन्नाटा
ReplyDeleteवो बोलती खामोशी
और फिजाँ मे महकती
रात की रानी*
बीते दौर की कहानी
बन कर
अब कहीं खो चुकी है
चीखते राज मार्गों के
मर्मांतक शोर मे
भोर से
भोर के होने तक।
बहुत सुन्दर v सार्थक अभिव्यक्ति .आभार माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता
यही तो है वर्तमान...
ReplyDeleteवाकई सन्नाटे बोलते हैं ....मैंने भी सुना है ....:)
ReplyDeleteबहुत जरूरी है ये सन्नाटा जीवन में ... लाजवाब लिखा है यशवंत जी ... इसके बिना जीवन में सकून नहीं आएगा ..
ReplyDeleteयशवंत भाई शायद इसलिए आज भी सबसे ज्यादा सुकून गाँव के उन पेड़ों के नीचे हैं. बहुत अच्छी कविता लिखते हैं आप.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद निहार जी !
ReplyDeleteयह सन्नाटा जो बिखरा पड़ा था कई सदियों तक तन्हां अकेला,
ReplyDeleteआज ढूँढता है हर तन्हां अकेला इंसान, गलियों में मारा मारा..
धन्यवाद प्रतीक भाई!
ReplyDeleteयह सन्नाटा जो बिखरा पड़ा था कई सदियों तक तन्हां अकेला,
ReplyDeleteआज ढूँढता है हर तन्हां अकेला इंसान, गलियों में मारा मारा..
धन्यवाद प्रतीक भाई
ReplyDeletebahut sundar likha hai ..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मैम
ReplyDeleteबहार सन्नाटा मिलना तो अब नामुमकिन मालूम होता है, अपने अन्दर ही खोजना पड़ेगा . बहुत खूब लिखा है यशवंत जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आंटी!
ReplyDeletebahut khoob likha hai yashvant ji.....
ReplyDeletesadhanyvaad!
बहुत बहुत धन्यवाद मैम!
ReplyDeleteसचमुच सन्नाटा बड़ा सुकून देता, खुद को खुद से मिलाता है, लेकिन आजकल ये भी खोता, दूर होता जा रहा है ... बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संध्या जी ।
ReplyDeleteSahi kaha yashwant ji
ReplyDeleteधन्यवाद नूपुर जी ।
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद सर!
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