बस
कुछ टूटे फूटे शब्द
नियमों से परे
कभी कभी
ले लेते हैं
एक आकार
कर देते हैं
कल्पना को साकार
जिनमे न रस
न छंद
न अलंकार की सुंदरता
जिनमे न हलंत
न विसर्ग
न विराम और
मात्राओं की जटिलता
बस है
तो सिर्फ
एक मुक्त
उछृंखल
अभिव्यक्ति
अन्तर्मन की
पंक्ति !
हाँ यह
बिखरे शब्द
इधर उधर उड़ते शब्द
कुछ कहते शब्द
सिर्फ कुछ पंक्तियाँ हैं
कविता नहीं
क्योंकि
कुछ कहना आसान है
शब्दों को ऊपर नीचे
सजाना आसान है
आसान है तुकबंदी
भावनाओं की जुगल बंदी
आसान है
मर्म स्पर्शी लिखना
पर बहुत कठिन है
कविता रचना ।
©यशवन्त माथुर©
कुछ टूटे फूटे शब्द
नियमों से परे
कभी कभी
ले लेते हैं
एक आकार
कर देते हैं
कल्पना को साकार
जिनमे न रस
न छंद
न अलंकार की सुंदरता
जिनमे न हलंत
न विसर्ग
न विराम और
मात्राओं की जटिलता
बस है
तो सिर्फ
एक मुक्त
उछृंखल
अभिव्यक्ति
अन्तर्मन की
पंक्ति !
हाँ यह
बिखरे शब्द
इधर उधर उड़ते शब्द
कुछ कहते शब्द
सिर्फ कुछ पंक्तियाँ हैं
कविता नहीं
क्योंकि
कुछ कहना आसान है
शब्दों को ऊपर नीचे
सजाना आसान है
आसान है तुकबंदी
भावनाओं की जुगल बंदी
आसान है
मर्म स्पर्शी लिखना
पर बहुत कठिन है
कविता रचना ।
©यशवन्त माथुर©
बहुत सच कहा है, पर यह निश्चय ही सुन्दर और सार्थक कविता है...
ReplyDeleteधन्यवाद अंकल
ReplyDeleteकहा है मुश्किल .. आपने अभी अभी तो फ्रूव किया है इतनी लाजवाब रचना गढ़ के ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर!
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा यशवंत...वास्तव में काविता रचना बहुत मुश्किल होता है ...एक बार मैंने भी कुछ यूँही लिखा था
ReplyDeleteसिर्फ लिखने के लिए लिखना
कितना सार्थक है
कितना है निरर्थक
बिन सोचे, बिन जाने
सिर्फ कुछ कागज रंगना
हर बार का धोखा
हर बार गलतफहमी
शायद इस बार
बात दिल की हमने
लफ्ज़ ब लफ्ज़
बिलकुल सही कह दी
वाकई
क्या उकेर पाते है हम
अपने ज़ज्बातों को
पोशीदा ख्यालातों को
जानते है हम भी कि
कलम कि नोक तक आते
हज़ार रंग बदल लेती है ख्वाहिशें
बात बदलती है तो
रुख नया इख्तियार
करती है हैं हसरतें
फिर भी करते हम दावा
दिल बात जहाँ को
समझाने का
शब्दों से खिलवाड़ कर
शायर, कवि, लेखक
बन जाने का
काश!
इतनी कुव्वत देता खुदा
इंसान कर पाता जो खुद को बयां
कम से कम
एक इंसान दूसरे को तो समझ पाता............
बहुत बहुत धन्यवाद मैम!
ReplyDeleteआपकी कविता सच को दिखाती है। इसे यहाँ भी साझा करने के लिये आपका आभारी हूँ।
कविता लिखना वाकई कठिन काम है कविता न तो कसरत से लिखी जा सकती है, न कोशिश से, न कोष से और न शब्द कोश से । यह तो अनुभूतियों को सार्थक शब्द देने की कला है जो गुरु और दैवीय कृपा के बिना संभव नहीं ।
ReplyDeleteआपकी अनुभूतियों को जो स्वर मिला है वह भी माँ सरस्वती का प्रसाद है। बहुत-बहुत साधुवाद।
आपने बिलकुल सही कहा।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद इन्दु जी।
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 05/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
ReplyDeleteमेल पर प्राप्त टिप्पणी-
ReplyDeletevibha rani shrivastava
मुझे तो बहुत अच्छी लगी :)
इसे अगर कविता नहीं कहें तो
किसी को कविता लिखनी नहीं आती
शुभकामनायें !!
धन्यवाद आंटी!
ReplyDeleteमैं सच मे अपने लिखे को कविता नहीं 'पंक्ति' ही मानता हूँ ।
बेहतरीन ...
ReplyDeleteधन्यवाद आंटी !
ReplyDeleteआपकी यह कुछ पंक्तियाँ ही बहुत बेहतरीन लगी..
ReplyDelete:-)
धन्यवाद रीना जी
ReplyDeleteBeautiful...
ReplyDeleteThank you Noopur ji
ReplyDeleteदीदी मैं इसे भी कविता नहीं मानता....[image: :)] मैं अपने लिखे को 'पंक्ति' ही मानता हूँ ।
ReplyDeleteमगर ये कठिन कार्य आपने बखूबी कर डाला.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
सस्नेह
अनु
कविता कहना हो कठिन, किन्तु मूल हैं भाव |
ReplyDeleteशब्दों को तो चाहिए, थोडा सा ठहराव |
थोडा सा ठहराव , ऊर्जा गतिज हमेशा |
पैदा कर विखराव, नहीं दे सके सँदेशा |
स्थिति-प्रज्ञ स्थितिज, देखिये ऊपर सविता |
परिक्रमा कर धरा, धरा पर रचिए कविता ||
आपकी टिप्पणी का हमेशा इंतज़ार रहता है अंकल।
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अंकल!
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