अब वो दौर नहीं
जब लिखी जाती थीं चिट्ठियाँ
पहुँच कर मंज़िल पर
पढ़ ली जाती थीं चिट्ठियाँ
वो भी क्या पोस्टकार्ड
क्या अंतर्देशीय हुआ करते थे
टेलीग्राम का नाम सुन
सब बेचैन हुआ करते थे
लगते थे मजमे
पढे-लिखों के ठौर पर
अनपढ़ जहां अपनों की
बातें सुना करते थे
तब खून की स्याही में डूब कर
दिल मिलाती थीं चिट्ठियाँ
अब एक पल में पहुँच कर
तिलमिलाती हैं चिट्ठियाँ।
~यशवन्त माथुर©
sangeeta swarup
ReplyDeleteसच ही अब वो ज़माना नहीं जब डाकिये का इंतज़ार किया जाता था :):)
vibha rani Shrivastava
ReplyDeleteबहुत मज़ा आता था किसी-किसी की प्रेम पाती पढ़ने में भी...।
लिखने के लिए खुशामद करने वालो को परेशान करने में भी ...।
ख़त पर गाने कितने बने आज भी वे मधुर लगते हैं ...।
हार्दिक शुभकामनायें ..।
Shalini Rastogi
ReplyDeleteबहुत बढ़िया यशवंत जी ... वाकई वो चिट्ठियों का दौर अब कहाँ?
Digamber Naswa
ReplyDeleteअब जेट युग है ... नेट का ज़माना है ...
manav mehta
ReplyDeletesahi baat jnaab
Anita Nihalani
ReplyDeleteसही कहा है, अब झट से चिट्ठी पहुंच जाती है तो इंतजारी का आनंद कहाँ...
Suman Kapoor
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा यशवंत ..अब वो दौर कहाँ ....
Rahul Kumar
ReplyDeletevery nice
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P.N. Subramanian
ReplyDeleteसही में वो ज़माना और था और ए ज़माना और है. कभी सोचा ना था कि अपने जीवन में इतने सारे बदलाव देख् लेंगे. सुंदर रचना.
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Kavita Rawat
ReplyDeleteचिट्ठियों की याद दिला दी आपने ..वे दिन याद कर मन में एक हलचल से मचने लगती हैं ...उस दौर में खो जाना अच्छा लगता है...कभी सोचा ही नहीं करते थे की ऐसा भी समय जल्दी आ जाएगा..
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
Ramakant Singh
ReplyDeleteसचमुच वो खुबसूरत जमाना अब नहीं रहा पत्र लेखन एक विधा है जिसमें जीवन जीवंत हो उठता है
Suresh Agarwal Adhir
ReplyDeleteab intezaar nhi hota kisis se...
itihaas hoti ja rhi hai chithiya