वर्तमान के उजले
मुखौटे के भीतर
भविष्य का काला सच दबाए
कुछ लोग चलते जाते हैं
अपनी राह
पूरे होशो हवास मे
आत्मविश्वास मे
वो जानते हैं
भेड़चाल का परिणाम
झूठ का सच मे बदलना है
समय के साथ
धुलना तो है ही
इस सफेदी को
पर तय है
कालिख का
प्रसाद चख कर
अंध भक्तों को
बिना संभले गिरना है
क्योंकि मुखौटे की
अस्थायी ,स्थायी पहचान
देखने नहीं देती
खरोच पर उभरी
काली लकीर को।
©यशवन्त माथुर©
मुखौटे के भीतर
भविष्य का काला सच दबाए
कुछ लोग चलते जाते हैं
अपनी राह
पूरे होशो हवास मे
आत्मविश्वास मे
वो जानते हैं
भेड़चाल का परिणाम
झूठ का सच मे बदलना है
समय के साथ
धुलना तो है ही
इस सफेदी को
पर तय है
कालिख का
प्रसाद चख कर
अंध भक्तों को
बिना संभले गिरना है
क्योंकि मुखौटे की
अस्थायी ,स्थायी पहचान
देखने नहीं देती
खरोच पर उभरी
काली लकीर को।
©यशवन्त माथुर©
वर्तमान के उजले
ReplyDeleteमुखौटे के भीतर
भविष्य का काला सच दबाए
कुछ लोग चलते जाते हैं
अपनी राह
पूरे होशो हवास मे
आत्मविश्वास मे
कब तक चलेगें ?
जो आज तक नहीं हो सका है ,
ज्यादा दिन तक उनके साथ भी नहीं चलेगा .... !!
क्योंकि मुखौटे की
ReplyDeleteअस्थायी ,स्थायी पहचान
देखने नहीं देती
खरोच पर उभरी
काली लकीर को। sacchi aur sateek baat kahi apne....
वर्तमान के उजले
ReplyDeleteमुखौटे के भीतर
भविष्य का काला सच दबाए
कुछ लोग चलते जाते हैं
अपनी राह
पूरे होशो हवास मे
आत्मविश्वास मे
और यही भ्रष्ट लोग ही बर्बादी का कारण होते है...
गहन गंभीर रचना !
ReplyDeleteएक ज़िद हो जैसे...गिरने की,
जो चल देते हैं उजले अंधेरों की ओर...
गहन गंभीर रचना !
ReplyDeleteएक ज़िद हो जैसे...गिरने की,
जो चल देते हैं उजले अंधेरों की ओर...
गहन गंभीर रचना !
ReplyDeleteएक ज़िद हो जैसे...गिरने की,
जो चल देते हैं उजले अंधेरों की ओर...
"वर्तमान के उजले
ReplyDeleteमुखौटे के भीतर
भविष्य का काला सच दबाए
कुछ लोग चलते जाते हैं
अपनी राह
पूरे होशो हवास मे
आत्मविश्वास मे"
और आखिर कोयलो की द्लाली में मुँह काला हो ही जाता है। सरोकार लिए सार्थक रचना।
क्योंकि मुखौटे की
ReplyDeleteअस्थायी ,स्थायी पहचान
देखने नहीं देती
खरोच पर उभरी
काली लकीर को।
बडी गहरी बात कह दी।
बहुत सुन्दर ..गहन रचना ..यशवन्त..ईद मुबारक..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना यशवंत....
ReplyDeleteसोच में डाल देती हैं हर पंक्ति....
बहुत सुन्दर.
सस्नेह
अनु
शब्द रहित समर्थन
ReplyDeleteसादर
मुखौटा नकली चढा के,करते है उपभोग
ReplyDeleteजिस दिन उतर जागा,जान जायेगें लोग,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
वो जानते हैं
ReplyDeleteभेड़चाल का परिणाम
झूठ का सच मे बदलना है
गहन अभिव्यक्ति
बिल्कुल सही...गहरी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteशायद अरसे बाद लौटा हूँ यशवंत!
ReplyDeleteकविता में स्याह और सफ़ेद का ज़िक्र है और ब्लॉग में सुर्ख रंग भर दिया है!
क्या बात है!
आशीष
--
द टूरिस्ट!!!
जहाँ देखो वहीँ मुखौटे ...
ReplyDeleteगंभीर सुन्दर रचना
ReplyDeleteवो जानते हैं
ReplyDeleteभेड़चाल का परिणाम
झूठ का सच मे बदलना है
वाह...वाह...यह बात इस तरह से आपने कही है कि नई बात पैदा हुई है. बहुत खूब.
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 22/08/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteक्योंकि मुखौटे की
ReplyDeleteअस्थायी ,स्थायी पहचान
देखने नहीं देती
खरोच पर उभरी
काली लकीर को।
बहुत ही खूबसूरत ....
क्योंकि मुखौटे की
ReplyDeleteअस्थायी ,स्थायी पहचान
देखने नहीं देती
खरोच पर उभरी
काली लकीर को।
निःशब्द करते लाइन जहाँ भावनाओं से बड़े भाव हैं
बहुत गहराईयुक्त सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteमुखोटे और भी बहुत कुछ छुपा लेते हैं चेहरे से ...
ReplyDeleteगहरी बात कही है ...
गूढ़ बात को अनोखे में अंदाज में कह गए, वाह !!!!!!
ReplyDeleteअति सुन्दर.
ReplyDeletegehari baat keh di apne yashwant bhai apne...
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