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20 July 2025
चलता रहा
कदम गिने बगैर राह पर चलता रहा।
बेहिसाब वक्त से सवाल करता रहा।
लोग कोशिश करते रहे बैसाखी बनने की।
सहारा जब भी लिया, मैं गिरता रहा।
माना कि बेहोश था, होश में आने के पहले।
ज़माना जीता रहा और मैं मरता रहा।
~यशवन्त माथुर©
20072025
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