प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

06 December 2012

सन्नाटा ......



यूं तो अक्सर
दिन और रात
कटते हैं
शोर में
फिर भी
भटकता है मन
कभी कभी
सन्नाटे की तलाश में

सन्नाटा
जो घोर अंधेरी रातों में
साथ साथ चलता है

सन्नाटा
जो डर और दहशत के पलों मे
बोलता है
काँपते होठों की जुबां

सन्नाटा
जो हवा मे तैरते
शास्त्रीय स्वरों और रागों की
छिड़ी तान के साथ
बंद आँखों और खुले कानों को
सुकून देता है

वो सन्नाटा
वो बोलती खामोशी
और फिजाँ मे महकती
रात की रानी*
बीते दौर की कहानी
बन कर
अब कहीं खो चुकी है
चीखते राज मार्गों के
मर्मांतक शोर मे
भोर से
भोर के होने तक। 

----
*रात की रानी एक फूल होता  है 

©यशवन्त माथुर©  


27 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना ... कभी कभी मन सन्नाटे के लिए भी बेचैन हो जाता है ....


    रात की रानी हारसिंगार नहीं होता ... वो अलग फूल है.... बाकी जानकार लोग बताएँगे :):)

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत धन्यवाद आंटी....मैं थोड़ा कनफ्यूज़ था कि रात की रानी हर सिंगार को कहा जाता है। मैंने पोस्ट को एडिट कर के "रात की रानी एक फूल होता है" लिख दिया है।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर रचना यशवंत

    गहन भाव हैं कविता में.....
    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  4. ई मेल से प्राप्त टिप्पणी -

    विभा रानी श्रीवास्तव


    रात की रानी के पेड़ की डाली पतली-पतली लत्तर जैसी होती है और फूल एकदम
    सफेद और थोड़ा लम्बा होता है, उसमें खुशबू बहुत होती है ,शाम होते खिलने
    लगता है पर देवताओं पर नहीं चढ़ाया जाता और हरसिंगार का बड़ा वृक्ष होता है
    और वो सुबह लगभग 4 बजे खिलता और सुबह होते-होते झड़ जाता है ,उसका फूल
    सफेद-गोल होता है लेकिन बीच में बैगनी रंग होता है पहले उससे कपड़ें रंगने
    के लिए रंग भी तैयार किये जाते थे वो देवताओं पर भी चढ़ता है एक ऐसा फूल जो
    नीचे गिरा हो तो भी चढ़ाया जा सकता है पेड़ के नीचे गोबर-मिट्टी से लीप कर
    साफ जगह बना दिया जाता है !!

    ReplyDelete
  5. इतनी अच्छी जानकारी देने के लिये आपका धन्यवाद आंटी!

    ReplyDelete
  6. वो सन्नाटा
    वो बोलती खामोशी
    और फिजाँ मे महकती
    रात की रानी*
    बीते दौर की कहानी
    बन कर
    अब कहीं खो चुकी है
    चीखते राज मार्गों के
    मर्मांतक शोर मे
    भोर से
    भोर के होने तक।
    बहुत सुन्दर v सार्थक अभिव्यक्ति .आभार माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता

    ReplyDelete
  7. यही तो है वर्तमान...

    ReplyDelete
  8. वाकई सन्नाटे बोलते हैं ....मैंने भी सुना है ....:)

    ReplyDelete
  9. बहुत जरूरी है ये सन्नाटा जीवन में ... लाजवाब लिखा है यशवंत जी ... इसके बिना जीवन में सकून नहीं आएगा ..

    ReplyDelete
  10. यशवंत भाई शायद इसलिए आज भी सबसे ज्यादा सुकून गाँव के उन पेड़ों के नीचे हैं. बहुत अच्छी कविता लिखते हैं आप.

    ReplyDelete
  11. बहुत बहुत धन्यवाद निहार जी !

    ReplyDelete
  12. Pratik Maheshwari14 December 2012 at 13:03

    यह सन्नाटा जो बिखरा पड़ा था कई सदियों तक तन्हां अकेला,
    आज ढूँढता है हर तन्हां अकेला इंसान, गलियों में मारा मारा..

    ReplyDelete
  13. धन्यवाद प्रतीक भाई!

    ReplyDelete
  14. Pratik Maheshwari14 December 2012 at 13:03

    यह सन्नाटा जो बिखरा पड़ा था कई सदियों तक तन्हां अकेला,
    आज ढूँढता है हर तन्हां अकेला इंसान, गलियों में मारा मारा..

    ReplyDelete
  15. धन्यवाद प्रतीक भाई

    ReplyDelete
  16. bahut sundar likha hai ..

    ReplyDelete
  17. बहुत बहुत धन्यवाद मैम

    ReplyDelete
  18. बहार सन्नाटा मिलना तो अब नामुमकिन मालूम होता है, अपने अन्दर ही खोजना पड़ेगा . बहुत खूब लिखा है यशवंत जी

    ReplyDelete
  19. बहुत बहुत धन्यवाद आंटी!

    ReplyDelete
  20. bahut khoob likha hai yashvant ji.....
    sadhanyvaad!

    ReplyDelete
  21. बहुत बहुत धन्यवाद मैम!

    ReplyDelete
  22. सचमुच सन्नाटा बड़ा सुकून देता, खुद को खुद से मिलाता है, लेकिन आजकल ये भी खोता, दूर होता जा रहा है ... बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  23. बहुत बहुत धन्यवाद संध्या जी ।

    ReplyDelete
  24. Sahi kaha yashwant ji

    ReplyDelete
  25. धन्यवाद नूपुर जी ।

    ReplyDelete
  26. उत्कृष्ट प्रस्तुति

    ReplyDelete
+Get Now!