आदरणीया अनुपमा पाठक जी की आज की पोस्ट के शीर्षक से प्रेरित पंक्तियाँ
रास्ता ही मंज़िल है
और हर मंज़िल
एक रास्ता है
नज़रों से ओझल
खुशी के फूलों से आती
मन भाती खुशबू को
ढूंढ कर
मन के किसी कोने मे
सहेज लेने की
बीते कल के सपनों के
आज में बदलने की
कुछ पूर्व निश्चित है
कुछ अनिश्चित है
कभी दोराहे,तिराहे
और चौराहों को
हम पहचानते हैं
कभी अनजान रास्ते भी
हमीं को जानते हैं
कभी रास्तों पर
चलते चलते
अपने पड़ाव
पर पहुँचने की
जल्दी होती है
कभी मन भटका कर
अनजान मंज़िल
इंतज़ार कर रही होती है
वक़्त की तेज़ी के साथ
पल पल गुजरते
नए रास्ते
काँटों से सजे
कभी फूलों से भरे
कुछ सीख कर
समझ कर
जीवन के भंवर में फँसकर
सर उठाकर
फिर निकलना ही
इसका हासिल है
हर रास्ता ही मंज़िल है ।
~यशवन्त माथुर©
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बहुत बढिया......राह भी तुम हो, मंजिल भी तुम बनो
ReplyDeleteपंछी सा उडान भरो,हौसला बुलंद करो
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteशुभप्रभात
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट
हार्दिक शुभकामनायें
sach hai har raste par nai manjil hai aur har manjil se naya rasta.
ReplyDeleteachha likha hai
shubhkamnayen
हर कदम मंजिल की ओर ले जाता है..चाहे भटका कर या सीधे सीधे..सुंदर रचना !
ReplyDeleteरास्ता तय करना भी खुबसूरत एहसास है .....
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