बहुत अजीब होता है
ये मन भी
कहाँ होता है
कहाँ तक ले जाता है
कैसे कैसे दृश्य
कभी जहाजों की उड़ान
कभी दूर अनंत की सैर
कभी हिमालय की गोद में
कभी मरू का रोमांच
गम को खुशी
खुशी को गम
रंक को राजा
राजा को रंक
बना देता है
बैठे बैठे
उम्मीदों के
हवाई किले
जिसे पा न सका
वो भी
करीब
महसूस होता है
मृग मरीचिका जैसा
ये मन
बहुत अजीब होता है.
मन तो ऐसा ही होता है यशवंत जी ....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteमन की बदौलत ही तो कल्पनाओं का सृजन होता है , अगर ये अजीब मन न अपना होता तो जीने का कोई हल नहीं होता
ReplyDeleteसचमुच बड़ा अजीब होता है मन! सुन्दर!
ReplyDeleteमन को पिंजड़े में मत पालो .........अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई
ReplyDeleteसही बात है बहुत ही अजीब होता है। धन्यवाद।
ReplyDeleteमन तो वाकई में बहुत अजीब होता है...इतना अजीब न होता तो शायद मन-मन न होता...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
nice post
ReplyDelete.बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति|धन्यवाद।
ReplyDeleteमन को बांधना कहाँ आसान है..... सुंदर भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसही कहा आपने .. मन सच में अजीब होता है ... :)
ReplyDeleteman kee udanon kee khoobsurat abhivyakti..
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना
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