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03 March 2011

बस यूँ ही

बस यूँ ही
कुछ ख्याल
जो अक्सर
मन में आ जाते हैं
लिख देता हूँ
यहाँ
एक किताब समझ कर
ये कविता है या नहीं
मैं नहीं जानता
ये शायरी या कुछ और
मैं नहीं जानता
बस कोशिश करता हूँ
कुछ अपनी कहने की
और कुछ सुनने की
शायद
इस बात से
कोई नयी बात बन जाए
शायद
एक नयी सोच बन जाए
शायद
मेरा बन बदल जाए
कुछ  पल को
और पा लूँ
अस्थायी मुक्ति
छद्म प्रलाप से.

19 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  2. टिपण्णी कर रही हूँ
    ये सोचकर
    शायद इससे
    आपका होसला बढ़ जाये.
    बहुत खूब.

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  3. अच्छे शब्द दिए हैं आपने अपने भाव को ... बहुत खूब ..

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  4. वाह क्या बात कही है…………सुन्दर भाव संयोजन्।

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  5. वाह...
    बहुत खूब...
    यहाँ मुक्ति और शांती दोनों है... अपार मात्रा में...
    जितनी चाहे बटोर लीजिये...

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  6. कुछ पल को
    और पा लूँ
    अस्थायी मुक्ति
    छद्म प्रलाप से.
    अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई

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  7. बहुत खूब..सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  8. isi tarah to mann kalam ban panne per lakiren khinchta hai

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  9. कमाल की सोच और उम्दा भाव ....बहुत खूब

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  10. बेहतरीन शब्दों की जादुगरी।

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  11. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  12. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (05.03.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  13. खूबसूरत सोच जगाती पंक्तियां !!!

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  14. कुछ पल को
    और पा लूँ
    अस्थायी मुक्ति
    छद्म प्रलाप से...

    बेहतरीन शब्दों को आपने एक नए दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया है..
    बहुत बहुत आभार !

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  15. यशवन्त माथुर जी,
    शायद
    इस बात से
    कोई नयी बात बन जाए
    शायद
    एक नयी सोच बन जाए
    शायद
    मेरा बन बदल जाए....

    अनेक रंग लिए हुए है आपकी सुन्दर भावाव्यक्ति ...
    बहुत खूब ..

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  16. कुछ पल को
    और पा लूँ
    अस्थायी मुक्ति
    छद्म प्रलाप से.
    kitna sach kaha he na aapne...sach me...ham sab ..jo likhe jate hain..wo isliye hi to likhte ..likhne ka baad..kuch plon ke liye khud ko halk mehsus krte hain
    bahut ache bhaaw...achi rchna

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  17. इस बात से
    कोई नयी बात बन जाए
    शायद
    एक नयी सोच बन जाए
    शायद
    मेरा बन बदल जाए
    कुछ पल को
    और पा लूँ
    अस्थायी मुक्ति
    छद्म प्रलाप से.
    ................उम्दा भाव ....बहुत खूब

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