वो बीती बात हो गए
वक़्त की स्याही में डूब कर
क्यों उनको याद कर के
दो फूल चढा दूं ?
इतिहास की किताबों में
झेलता हूँ
रटता हूँ
कोई फ़िल्मी गाना नहीं
कि हर पल गुनगुना लूँ .
वो कल के पागल थे
जो मेरा आज संवार गए
ये कोई कर्ज नहीं
कि उनका ब्याज उतारूँ.
है अपनी ही धुन मेरी
अपना जहान है मेरा
क्यों धूल पोछ कर मूरत की
गले में हार डालूं?
(आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुख देव और राज गुरु ने देश के लिए खुद को न्योछावर कर दिया था.आज का युवा वर्ग बस अपनी ही मस्ती में मस्त है शहीदों की कुर्बानी तो दूर उनके नाम तक ठीक से नहीं पता .बस इस कविता में आज के युवा की सोच दर्शाने का प्रयास मात्र किया है )
वक़्त की स्याही में डूब कर
क्यों उनको याद कर के
दो फूल चढा दूं ?
इतिहास की किताबों में
झेलता हूँ
रटता हूँ
कोई फ़िल्मी गाना नहीं
कि हर पल गुनगुना लूँ .
वो कल के पागल थे
जो मेरा आज संवार गए
ये कोई कर्ज नहीं
कि उनका ब्याज उतारूँ.
है अपनी ही धुन मेरी
अपना जहान है मेरा
क्यों धूल पोछ कर मूरत की
गले में हार डालूं?
(आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुख देव और राज गुरु ने देश के लिए खुद को न्योछावर कर दिया था.आज का युवा वर्ग बस अपनी ही मस्ती में मस्त है शहीदों की कुर्बानी तो दूर उनके नाम तक ठीक से नहीं पता .बस इस कविता में आज के युवा की सोच दर्शाने का प्रयास मात्र किया है )
कितने ऐसे लोग हैं जिन्हें आज के दिन के बारे में कुछ भी पता नहीं...
ReplyDeleteये बेहद शर्मनाक बात है..
कल के पागल थे
ReplyDeleteजो मेरा आज संवार गए
ये कोई कर्ज नहीं
कि उनका ब्याज उतारूँ.
dil ko chhoo lene vali panktiya .shaheedon ko ham aise hi ''pagal'' ka darja dete hain .
गहन भावों को प्रकट करती आपकी प्रस्तुति सराहनिए है . ''ये ब्लॉग अच्छा लगाhttp://yeblogachchhalaga.blogspot.com ''में शामिल होकर उत्साहवर्धन करें .धन्यवाद .
ReplyDeleteवीर शहीदों को शत शत नमन
ReplyDeleteवो बीती बात हो गए
ReplyDeleteवक़्त की स्याही में डूब कर
क्यों उनको याद कर के
दो फूल चढा दूं ?
बेहतरीन शब्द रचना ।
वो बीती बात हो गए
ReplyDeleteवक़्त की स्याही में डूब कर
क्यों उनको याद कर के
दो फूल चढा दूं ?bhut hi bhaavpur sardhanjali di hai apne veer sahido ko...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
वो कल के पागल थे
ReplyDeleteजो मेरा आज संवार गए
ये कोई कर्ज नहीं
कि उनका ब्याज उतारूँ.
मन के गहन आक्रोश को बहुत सटीकता से व्यक्त किया है..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
वो कल के पागल थे
ReplyDeleteजो मेरा आज संवार गए
ये कोई कर्ज नहीं
कि उनका ब्याज उतारूँ.....
यह कृतघ्नता ही तो देश की सुख-शांति को डुबाए हुए है....
गहन चिन्तनयुक्त विचारणीय रचना.
है अपनी ही धुन मेरी
ReplyDeleteअपना जहान है मेरा
क्यों धूल पोछ कर मूरत की
गले में हार डालूं?
विचारणीय रचना.
वाह यशवंत, बहुत सुन्दर कविता ! हमें अपना अतीत नहीं भूलना चाहिए ... जिस पेड़ का जड़ नहीं है वो टिकता नहीं है ...
ReplyDeleteइतिहास की किताबों में
ReplyDeleteझेलता हूँ
रटता हूँ
कोई फ़िल्मी गाना नहीं
कि हर पल गुनगुना लूँ .
bahut badhiyaa
शहीदो की चिताओ लगेंगे हर बरस मेले
ReplyDeleteवतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा
Man ke taaron ko jhankrit kar diya....
ReplyDeleteहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्यागख्याै।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
आज के युवा की सोच दर्शाने का प्रयास bahut achchi tarah se kiye hain......bilkul sach hai yah.
ReplyDeletewell woven and very true....
ReplyDeleteबहुत सुंदर ... पंक्तियाँ
ReplyDeleteनमन इन वीर देशभक्तों को....
सुंदर कविता यशवंत भैया .... वीर शहीदों को शत शत नमन
ReplyDeleteसुन्दर कटाक्ष.
ReplyDeleteTHOSE WHO FORGET HISTORY ARE CONDEMNED TO REPEAT IT.
SHAHEEDON KO NAMAN.
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDelete@ वंदना जी....चर्चा मंच पर लेने के लिए आपका विशेष आभार.