(1)
एक गिरगिट
पास की झाडियों में
खेल रहा था लुकाछिपी
और बदल रहा था
अपना रंग
लगातार
तलाश में था
अपने भोजन को
(2)
हम इंसान भी
गिरगिट ही तो हैं
बदलते पल के साथ
इच्छाएँ भी
बदलती जाती हैं
चाहतें बदलती जाती हैं
और बदल लेते हैं
हम भी
अपनी पहचान का रंग
कभी अच्छा
कभी बुरा.
एक गिरगिट
पास की झाडियों में
खेल रहा था लुकाछिपी
और बदल रहा था
अपना रंग
लगातार
तलाश में था
अपने भोजन को
(2)
हम इंसान भी
गिरगिट ही तो हैं
बदलते पल के साथ
इच्छाएँ भी
बदलती जाती हैं
चाहतें बदलती जाती हैं
और बदल लेते हैं
हम भी
अपनी पहचान का रंग
कभी अच्छा
कभी बुरा.
काफ़ी हद तक सहमत .....
ReplyDeleteइन्सानों में गिरगिट की सी मासूमियत नहीं है !
रंग बदलने के लिए गिरगिटों को बेकार बदनाम किया इसमें आदमी कहीं आगे है
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने....आज इंसान बस गिरगिट सा ही हो गया है...सुंदर विचार।
ReplyDeleteसही कहा आपने... बल्कि गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलते हैं!
ReplyDeleteइंसानी फ़ितरत को बखूबी उकेरा है………आज तो सभी गिरगिट हैं।
ReplyDeleteगिरगिट के बहाने मानवीय प्रकृति का यथार्थ बहुत सुन्दर ढंग से सामने रखा है आपने...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
हम इंसान भी
ReplyDeleteगिरगिट ही तो हैं
बदलते पल के साथ
इच्छाएँ भी
बदलती जाती हैं
चाहतें बदलती जाती हैं
और बदल लेते हैं
हम भी
अपनी पहचान का रंग
कभी अच्छा
कभी बुरा.
badhiyaa
सही तुलना।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए...
जीवन के निचोड़ से बनते हैं फ़लसफे़।
बदलते पल के साथ
ReplyDeleteइच्छाएँ भी
बदलती जाती हैं
चाहतें बदलती जाती हैं
और बदल लेते हैं
हम भी
अपनी पहचान का रंग
सच में यही होता है...
सही कहा आपने... बल्कि गिरगिट से भी ज्यादा रंग बदलते हैं!
ReplyDeleteगहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।
ReplyDeleteबदल लेते हैं
ReplyDeleteहम भी
अपनी पहचान का रंग
कभी अच्छा
कभी बुरा.
बहुत ही सच्ची बात कही है आपने
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत अच्छी क्षणिकायें इसमे मेरी भी एक जोड लें।---
ReplyDeleteवो सब के दोस्त?
मगर कैसे?
अपनी किस्मत ही क्यों
धोखा खा गयी
इक दिन देखा
गिरगिट को रंग बदलते
उनकी तरकीब
समझ आ गयी
धन्यवाद।
सच है आज तो हेर किसी में गिरगिट बसा है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
truth nicely told!!!
ReplyDelete100% correct.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
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