एक बार को लगा था
फूलों की राह पर
चल रहा हूँ
वक़्त बीतता गया
और फूल सूख गए
महसूस होने लगी
क़दमों तले तपन
दहकते पत्थरों की
पर चलना तो है ही
मैं चल रहा हूँ
फूलों से बचते हुए
हाँ इन फूलों की
खुशबू ज़रूर ले लेता हूँ
ले लेता हूँ
क्षणिक सुख
और सहेज लेता हूँ
तीखे काँटों को
अपने भीतर कहीं
अब एहसास ही नहीं होता
चुभन का
जलने का
और न अब
पैरों में छाले पड़ते हैं
पड़ चुकी है आदत
यूँ ही चलते जाने की
कहीं रुक कर
अपनी कहते जाने की
कोई सुने ना सुने
कोई फर्क नहीं
बस आज नहीं
शायद कल आने वाली
अपनी बारी है
संघर्ष अभी ज़ारी है.
फूलों की राह पर
चल रहा हूँ
वक़्त बीतता गया
और फूल सूख गए
महसूस होने लगी
क़दमों तले तपन
दहकते पत्थरों की
पर चलना तो है ही
मैं चल रहा हूँ
फूलों से बचते हुए
हाँ इन फूलों की
खुशबू ज़रूर ले लेता हूँ
ले लेता हूँ
क्षणिक सुख
और सहेज लेता हूँ
तीखे काँटों को
अपने भीतर कहीं
अब एहसास ही नहीं होता
चुभन का
जलने का
और न अब
पैरों में छाले पड़ते हैं
पड़ चुकी है आदत
यूँ ही चलते जाने की
कहीं रुक कर
अपनी कहते जाने की
कोई सुने ना सुने
कोई फर्क नहीं
बस आज नहीं
शायद कल आने वाली
अपनी बारी है
संघर्ष अभी ज़ारी है.
उफ़ ……………कितनी गहरी बात कह दी यशवत जी बेहद सरल शब्दो में………शानदार्।
ReplyDeleteपर चलना तो है ही
ReplyDeleteमैं चल रहा हूँ
फूलों से बचते हुए
फूल जब सूखते है तो कंटक बन जाते है
बहुत गहराई से निकले शब्द| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है ,शुभकामनायें !
ReplyDelete150 वीं पोस्ट के लिए बधाई ... सुन्दर रचना है ... अभी जीवन में बहुत संघर्ष करने हैं ... शुभकामनायें !
ReplyDelete@इन्द्रनील सर --बहुत बहुत धन्यवाद! वैसे यह 150 वीं कविता है कुल पोस्ट्स अब190 हो चुकी हैं.
ReplyDeleteकोई सुने ना सुने
ReplyDeleteकोई फर्क नहीं
बस आज नहीं
शायद कल आने वाली
अपनी बारी है
....
बहुत गहन और सार्थक प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
अब एहसास ही नहीं होता
ReplyDeleteचुभन का
जलने का
और न अब
पैरों में छाले पड़ते हैं
पड़ चुकी है आदत
यूँ ही चलते जाने की
kyonki kal apni baari hai, bahut badhiyaa
संघर्ष के जारी रहने में ही इसकी सार्थकता है
ReplyDeletemanobhavon ki sundar abhivyakti ! dhanywaad .
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...... शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसंघर्ष अभी ज़ारी है.... such hi kaha apne ki abhi to sangrsh jaari hai...
ReplyDeleteकोई सुने ना सुने
ReplyDeleteकोई फर्क नहीं
बस आज नहीं
शायद कल आने वाली
अपनी बारी
bahut aasha se judi sundar panktiyan.aap ke jeevan me aapki har aasha poori ho aisee hi shubhkamna hai.
सूखे हुए फूलों से भी आपको सुगंध मिल रही है ... अच्छी कविता !
ReplyDeleteबहुत गहन और सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteसबसे अच्छी बात भी यही है कि
ReplyDeleteसंघर्ष अभी ज़ारी है!
जीवन एक चुनौती है..........देखो और स्वीकार करो..........बहुत बढ़िया लिखा है आपने
ReplyDeleteअब एहसास ही नहीं होता
ReplyDeleteचुभन का
जलने का
और न अब
पैरों में छाले पड़ते हैं
पड़ चुकी है आदत
यूँ ही चलते जाने की
कहीं रुक कर
अपनी कहते जाने की
bahut sunder bhave liye achchi rachanaa.bahut-bahut badhaai aapko.
Sahi kaha, Ummed pe duniya kayam hai.
ReplyDelete............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
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