आसमां में उड़ती
उठती गिरती
आपस में लड़ती भिड़ती
और फिर
कट कर कहीं और
किसी और के पास
चली जाती पतंग
या फिर से वहीं
वापस आजाती
जहाँ से शुरू किया था
ऊपर उठना
एक डोर से बंधी
जिसका छोर
थामा हुआ किसी ने
नचा रहा जो उसे
अपनी मर्ज़ी से
हवा के रुख के साथ
देता ढील और
वो ऊपर उठती जाती है
है बड़ा अनिश्चित जीवन
पतंग का
अस्तित्व का संघर्ष
द्वन्द और अहम
असीम ऊंचाइयों में भी
नहीं छोड़ता साथ
रहना एक को ही होता है
या फिर से
वहीं आना होता है वापस
जहाँ से
शुरू किया था
आगे बढना
ऊंचा उठना
आना होता है फिर से
उसी के पास
थामी हुई है जिसने डोर
पतंग की .
उठती गिरती
आपस में लड़ती भिड़ती
और फिर
कट कर कहीं और
किसी और के पास
चली जाती पतंग
या फिर से वहीं
वापस आजाती
जहाँ से शुरू किया था
ऊपर उठना
एक डोर से बंधी
जिसका छोर
थामा हुआ किसी ने
नचा रहा जो उसे
अपनी मर्ज़ी से
हवा के रुख के साथ
देता ढील और
वो ऊपर उठती जाती है
है बड़ा अनिश्चित जीवन
पतंग का
अस्तित्व का संघर्ष
द्वन्द और अहम
असीम ऊंचाइयों में भी
नहीं छोड़ता साथ
रहना एक को ही होता है
या फिर से
वहीं आना होता है वापस
जहाँ से
शुरू किया था
आगे बढना
ऊंचा उठना
आना होता है फिर से
उसी के पास
थामी हुई है जिसने डोर
पतंग की .
[इस कविता को दो दिन पहले पोस्ट किया था किन्तु ब्लोगर की समस्या के चलते पहले तो यह पोस्ट ही उड़ गयी थी और जब वापस आई तो टिप्पणियाँ उडी हुईं थीं.अगर आपने इस पर पहले भी टिप्पणी दी थी जो अब आपको न दिखे तो ऐसा ब्लोगर की प्रोब्लम से ही हुआ है.आशा है पाठक गण अन्यथा नहीं लेंगे.]
बहुत सुन्दर दार्शनिक कविता जीवन के अनिश्चयता के बारे में !
ReplyDeleteहै बड़ा अनिश्चित जीवन
ReplyDeleteपतंग का
आस्तित्व का संघर्ष
द्वन्द और अहम
असीम ऊंचाइयों में भी
नहीं छोड़ता साथ
रहना एक को ही होता है
या फिर से
वहीं आना होता है वापस
जहाँ से
शुरू किया था
आगे बढना
ऊंचा उठना
आना होता है फिर से
उसी के पास
थामी हुई है जिसने डोर
पतंग की .kirtimaan sthaapit kerte gahre bhaw
बहुत सुन्दर दार्शनिक कविता|धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत उम्दा भाव!!
ReplyDeleteहै बड़ा अनिश्चित जीवन
ReplyDeleteपतंग का
आस्तित्व का संघर्ष
द्वन्द और अहम
असीम ऊंचाइयों में भी
नहीं छोड़ता साथ
रहना एक को ही होता है
जीवन के अनिश्चयता के बारे में बहुत सुन्दर कविता
जीवन की जद्दोज़हद को सिखाती पतंग..... हर पंक्ति सुंदर
ReplyDeleteएक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
ReplyDeleteपतंग के माध्यम से जीवन का सच बता दिया ,अच्छी अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें !
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteपतंग को ज़िंदगी से जोड़कर देखती है आपकी कविता ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteखुबसूरत भावाव्यक्ति के लिए बधाई
ReplyDeleteजहाँ से
ReplyDeleteशुरू किया था
आगे बढना
ऊंचा उठना
आना होता है फिर से
उसी के पास
थामी हुई है जिसने डोर
पतंग की .
....सरल शब्दों में गहन जीवन दर्शन दर्शाती बहुत सुन्दर रचना..
bhut hi sunder...
ReplyDeleteसुन्दर रचना। आभार।
ReplyDeleteहै बड़ा अनिश्चित जीवन
ReplyDeleteपतंग का
अस्तित्व का संघर्ष
द्वन्द और अहम
असीम ऊंचाइयों में भी
नहीं छोड़ता साथ
जीवन के हर क्षेत्र में अस्तित्व का संघर्ष है...
सुंदर रचना....
बहुत अच्छी लगी यह कविता।
ReplyDeletenice
ReplyDeleteजिंदगी का सार ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यश भैया
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteपतंग के माध्यम से जिंदगी का फलसफा बयां करती रचना !
ReplyDeleteजहाँ से
ReplyDeleteशुरू किया था
आगे बढना
ऊंचा उठना
आना होता है फिर से
उसी के पास
थामी हुई है जिसने डोर
पतंग की .
मैं पहली बार आपके पोस्ट पे आया हूँ
आकर आपके सारे पोस्ट पढ़े
बहुत खूब कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
पतंग के माध्यम से जीवन का सच बता दिया!!
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !
कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/
पतंग और डोर के सम्बन्ध से ज़िंदगी का फलसफा समझना अच्छा लगा .. सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत भावाव्यक्ति..पतंग के माध्यम से जीवन का सच कह डाला...तुम्हारी ये पोस्ट मुझसे कैसे छूट गई समझ नही आया...खैर देर से ही सही पढ़नेको तो मिली....शुभकामनायं..
ReplyDeleteसबसे पहले बधाई यशवंत जी .....
ReplyDeleteगहन है कविता ...पतंग और डोर को बड़ी खूबसूरती से जीवन से जोड़ा है ...!
sundar....kitna bhii uunchaa ud le...par dor to doosre ke haath hii hai.....
ReplyDeletejindagi ka sach batati...
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