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28 June 2011

वक़्त

आज फिर
'वक़्त'
मिल गया मुझ को
वो
दौड़ता हुआ
जा रहा था कहीं

कहने लगा-
तुम भी दौड़ो मेरे संग
मैं  भी दौड़ने लगा
उसका आमंत्रण  पाकर
बातें करने लगा उससे
कुछ अपनी कहता
कुछ उसकी सुनता
मैं  उसके संग
चलता जा रहा था

पर एक क्षण
मैं दौड़ते दौड़ते
खुद को संभाल न सका
मैं थक कर
हांफ हांफ कर
रुक गया
वक्त से भी कहा-
आओ तुम भी सुस्ता लो
फिर चलेंगे

वक़्त बोला -
मेरे पास
रुकने का वक़्त नहीं है
वक़्त बहुत कम है
मुझे जाना है
वो  चलता चला गया
अपनी राह

मैं देखता रह गया
और वो
बिना थके
दौड़ता जा रहा था
चलता  जा रहा था
उसी ऊर्जा से
उसी वेग से

वो हो गया था
मेरी आँखों से ओझल
वो  निकल चुका था
एक लंबे सफर पर
और मुझे
फिर शुरू करना था
दौड़ना

विश्राम से उठने  के बाद
मैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
और वो 'वक़्त'
तय कर रहा था
नए रास्तों को
पल  पल बीतते
वक़्त के साथ.
------------------------
[इस कविता का ऑडियो आप यहाँ सुन सकते हैं]

35 comments:

  1. मैं देखता रह गया
    और वो
    बिना थके
    दौड़ता जा रहा था
    चलता जा रहा था
    उसी ऊर्जा से
    उसी वेग से

    वक्‍त यूं ही हमेशा दौड़ता रहता है ...बेहतरीन ।

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  2. वक्त हर पल चलता रहता है ...हम ही रुक जाते हैं ...

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  3. वक़्त बोला -
    मेरे पास
    रुकने का वक़्त नहीं है
    वक़्त बहुत कम है
    मुझे जाना है
    वो चलता चला गया
    अपनी राह......बहुत सुन्दर ...सुन्दर अभिव्यक्ति सहज शब्दों में व्यक्त करने की खूबी सच, आप में है .....

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  4. विश्राम से उठने के बाद
    मैं वहीँ था
    जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
    और वो 'वक़्त'
    तय कर रहा था
    नए रास्तों को
    पल पल बीतते
    वक़्त के साथ.
    bahut sunder ....
    vakt ke sath chalana kathin to hai hi ...

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  5. आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्‍वागत है
    http://tetalaa.blogspot.com/

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  6. विश्राम से उठने के बाद
    मैं वहीँ था
    जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
    और वो 'वक़्त'
    तय कर रहा था
    नए रास्तों को
    पल पल बीतते
    वक़्त के साथ.


    वक़्त को बड़ी बारीकी से व्याख्यायित किया है आपने।

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  7. वक्त के साथ दौड़ना जोखिम भरा काम है...बहुत सुन्दर रचना...बधाई

    नीरज

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  8. बहुत ख़ूबसूरत..कितना मुश्किल होता है वक़्त के साथ चलना..

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  9. कविता थोड़ी लम्बी है, लेकिन वक्त को बाँधने का प्रयास खूबसूरत है , अंदाज़ अच्छा है बधाई यशवंत जी

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  10. विश्राम से उठने के बाद
    मैं वहीँ था
    जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
    और वो 'वक़्त'
    तय कर रहा था
    नए रास्तों को
    पल पल बीतते
    वक़्त के साथ.
    सही कहा यशवंत जी वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता वह तो अपना रास्ता पार करता ही रहता है.बहुत सुन्दर व् सजग भावाभिव्यक्ति.बधाई.

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  11. time is precious
    no doubt

    bt ur creation on time
    is priceless

    awesome read

    Thank u for d invitation
    Naaz

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  12. vakt ko baandhane kaa khoobasoorat andaaj...bahut badhiya post/kavita.

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  13. bilkul sahi bat hai waqt kabhi rukta nahi hai kisi ke liye...
    bahut achhi rachna

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  14. वक्त को कौन रोक पाया है... हाँ, खुशी में कहते हैं वक्त ठहर जाता है..सुंदर कविता !

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  15. शायद यही वक़्त की ख़ूबसूरती है ...... शुभकामनायें !

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  16. वक़्त हमेशा आगे की ओर ही भागता है और हम कहीं न कही रुकते ही हैं .सार्थक व् सुन्दर भावाभिव्यक्ति .आभार

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  17. सच है वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता .. कुछ समय तक साथ देता है फिर निकल जाता है ... थका हरा छोड़ कर ... लाजवाब रचना है ..

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  18. वक़्त बोला -
    मेरे पास
    रुकने का वक़्त नहीं है
    वक़्त बहुत कम है
    मुझे जाना है
    वो चलता चला गया
    अपनी राह......
    बहुत सुन्दर रचना...सुन्दर अभिव्यक्ति......

    ReplyDelete
  19. माथुर जी!

    समयचक्र ऐसा है ही बिना रुके, बिना थके सतत् चलता रहता है। और जीवन में अनेक बार हम उससे कदम मिलाकर चलने का प्रयास करते हैं पर वह हमें पीछे छोड़ आगे बढ़ जाता है। इस शाश्वत सत्य को व्यक्त करती हुई व्यथा-कथा -हर एक की अवस्था को रेखांकित करती हुई एक सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता रची है आपने ...................अच्छी लगी.................प्रभावशाली भी

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  20. वो हो गया था
    मेरी आँखों से ओझल
    वो निकल चुका था
    एक लंबे सफर पर
    और मुझे
    फिर शुरू करना था
    दौड़ना

    विश्राम से उठने के बाद
    मैं वहीँ था
    जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था



    ये पंक्तियाँ विशेषकर अच्छी लगी।....................


    सराहनीय

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  21. हाँ वक्त ही करता सवारी आदमी की साक्षी भाव लिए हम सब कुछ देखते रहतें हैं .अच्छी रचना .कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे .

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  22. " विश्राम से उठने के बाद
    मैं वहीँ था
    जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
    और वो 'वक़्त'
    तय कर रहा था
    नए रास्तों को
    पल पल बीतते
    वक़्त के साथ...."
    बेहद छु लेने वही पंक्तियाँ हैं ......
    बच्क्ग्रौंद म्यूजिक भी suport कर रह ह आपकी इस रचना को .....
    बहुत बहुत शुभ-कामनाएं !!!

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  23. जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  24. विश्राम से उठने के बाद
    मैं वहीँ था
    जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
    और वो 'वक़्त'
    तय कर रहा था
    नए रास्तों को
    पल पल बीतते
    वक़्त के साथ.

    बहुत बढ़िया ....सुंदर अभिव्यक्ति

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  25. वक़्त के गुलाम हैं सभी ,दौड़ना पड़ता है.बहुत खूब

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  26. सुंदर अभिव्यक्ति....

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  27. वक्त के साथ चलना चाहिए , दौड़ना हानी कारक है

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  28. इस वक़्त को भी क्या कहें, थम सा गया है आज कल|
    और भागता ही जा रहा है, बेवजह हर आदमी||

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  29. हम तो कहते थे हमारे पास वक़्त नही है
    यहाँ आये तो मालूम हुआ
    वक़्त को भी आस है वक़्त की

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  30. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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