आज फिर
'वक़्त'
मिल गया मुझ को
वो
दौड़ता हुआ
जा रहा था कहीं
कहने लगा-
तुम भी दौड़ो मेरे संग
मैं भी दौड़ने लगा
उसका आमंत्रण पाकर
बातें करने लगा उससे
कुछ अपनी कहता
कुछ उसकी सुनता
मैं उसके संग
चलता जा रहा था
पर एक क्षण
मैं दौड़ते दौड़ते
खुद को संभाल न सका
मैं थक कर
हांफ हांफ कर
रुक गया
वक्त से भी कहा-
आओ तुम भी सुस्ता लो
फिर चलेंगे
वक़्त बोला -
मेरे पास
रुकने का वक़्त नहीं है
वक़्त बहुत कम है
मुझे जाना है
वो चलता चला गया
अपनी राह
मैं देखता रह गया
और वो
बिना थके
दौड़ता जा रहा था
चलता जा रहा था
उसी ऊर्जा से
उसी वेग से
वो हो गया था
मेरी आँखों से ओझल
वो निकल चुका था
एक लंबे सफर पर
और मुझे
फिर शुरू करना था
दौड़ना
विश्राम से उठने के बाद
मैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
और वो 'वक़्त'
तय कर रहा था
नए रास्तों को
पल पल बीतते
वक़्त के साथ.
------------------------
[इस कविता का ऑडियो आप यहाँ सुन सकते हैं]
'वक़्त'
मिल गया मुझ को
वो
दौड़ता हुआ
जा रहा था कहीं
कहने लगा-
तुम भी दौड़ो मेरे संग
मैं भी दौड़ने लगा
उसका आमंत्रण पाकर
बातें करने लगा उससे
कुछ अपनी कहता
कुछ उसकी सुनता
मैं उसके संग
चलता जा रहा था
पर एक क्षण
मैं दौड़ते दौड़ते
खुद को संभाल न सका
मैं थक कर
हांफ हांफ कर
रुक गया
वक्त से भी कहा-
आओ तुम भी सुस्ता लो
फिर चलेंगे
वक़्त बोला -
मेरे पास
रुकने का वक़्त नहीं है
वक़्त बहुत कम है
मुझे जाना है
वो चलता चला गया
अपनी राह
मैं देखता रह गया
और वो
बिना थके
दौड़ता जा रहा था
चलता जा रहा था
उसी ऊर्जा से
उसी वेग से
वो हो गया था
मेरी आँखों से ओझल
वो निकल चुका था
एक लंबे सफर पर
और मुझे
फिर शुरू करना था
दौड़ना
विश्राम से उठने के बाद
मैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
और वो 'वक़्त'
तय कर रहा था
नए रास्तों को
पल पल बीतते
वक़्त के साथ.
------------------------
[इस कविता का ऑडियो आप यहाँ सुन सकते हैं]
मैं देखता रह गया
ReplyDeleteऔर वो
बिना थके
दौड़ता जा रहा था
चलता जा रहा था
उसी ऊर्जा से
उसी वेग से
वक्त यूं ही हमेशा दौड़ता रहता है ...बेहतरीन ।
वक्त हर पल चलता रहता है ...हम ही रुक जाते हैं ...
ReplyDeleteवक़्त बोला -
ReplyDeleteमेरे पास
रुकने का वक़्त नहीं है
वक़्त बहुत कम है
मुझे जाना है
वो चलता चला गया
अपनी राह......बहुत सुन्दर ...सुन्दर अभिव्यक्ति सहज शब्दों में व्यक्त करने की खूबी सच, आप में है .....
विश्राम से उठने के बाद
ReplyDeleteमैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
और वो 'वक़्त'
तय कर रहा था
नए रास्तों को
पल पल बीतते
वक़्त के साथ.
bahut sunder ....
vakt ke sath chalana kathin to hai hi ...
आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
ReplyDeletehttp://tetalaa.blogspot.com/
विश्राम से उठने के बाद
ReplyDeleteमैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
और वो 'वक़्त'
तय कर रहा था
नए रास्तों को
पल पल बीतते
वक़्त के साथ.
वक़्त को बड़ी बारीकी से व्याख्यायित किया है आपने।
वक्त के साथ दौड़ना जोखिम भरा काम है...बहुत सुन्दर रचना...बधाई
ReplyDeleteनीरज
बहुत ख़ूबसूरत..कितना मुश्किल होता है वक़्त के साथ चलना..
ReplyDeleteकविता थोड़ी लम्बी है, लेकिन वक्त को बाँधने का प्रयास खूबसूरत है , अंदाज़ अच्छा है बधाई यशवंत जी
ReplyDeleteविश्राम से उठने के बाद
ReplyDeleteमैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
और वो 'वक़्त'
तय कर रहा था
नए रास्तों को
पल पल बीतते
वक़्त के साथ.
सही कहा यशवंत जी वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता वह तो अपना रास्ता पार करता ही रहता है.बहुत सुन्दर व् सजग भावाभिव्यक्ति.बधाई.
time is precious
ReplyDeleteno doubt
bt ur creation on time
is priceless
awesome read
Thank u for d invitation
Naaz
vakt ko baandhane kaa khoobasoorat andaaj...bahut badhiya post/kavita.
ReplyDeletebilkul sahi bat hai waqt kabhi rukta nahi hai kisi ke liye...
ReplyDeletebahut achhi rachna
वक्त को कौन रोक पाया है... हाँ, खुशी में कहते हैं वक्त ठहर जाता है..सुंदर कविता !
ReplyDeleteशायद यही वक़्त की ख़ूबसूरती है ...... शुभकामनायें !
ReplyDeleteवक़्त हमेशा आगे की ओर ही भागता है और हम कहीं न कही रुकते ही हैं .सार्थक व् सुन्दर भावाभिव्यक्ति .आभार
ReplyDeleteसच है वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता .. कुछ समय तक साथ देता है फिर निकल जाता है ... थका हरा छोड़ कर ... लाजवाब रचना है ..
ReplyDeleteवक़्त बोला -
ReplyDeleteमेरे पास
रुकने का वक़्त नहीं है
वक़्त बहुत कम है
मुझे जाना है
वो चलता चला गया
अपनी राह......
बहुत सुन्दर रचना...सुन्दर अभिव्यक्ति......
sunder abhivakti....
ReplyDeleteमाथुर जी!
ReplyDeleteसमयचक्र ऐसा है ही बिना रुके, बिना थके सतत् चलता रहता है। और जीवन में अनेक बार हम उससे कदम मिलाकर चलने का प्रयास करते हैं पर वह हमें पीछे छोड़ आगे बढ़ जाता है। इस शाश्वत सत्य को व्यक्त करती हुई व्यथा-कथा -हर एक की अवस्था को रेखांकित करती हुई एक सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता रची है आपने ...................अच्छी लगी.................प्रभावशाली भी
वो हो गया था
ReplyDeleteमेरी आँखों से ओझल
वो निकल चुका था
एक लंबे सफर पर
और मुझे
फिर शुरू करना था
दौड़ना
विश्राम से उठने के बाद
मैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
ये पंक्तियाँ विशेषकर अच्छी लगी।....................
सराहनीय
हाँ वक्त ही करता सवारी आदमी की साक्षी भाव लिए हम सब कुछ देखते रहतें हैं .अच्छी रचना .कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे .
ReplyDelete" विश्राम से उठने के बाद
ReplyDeleteमैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
और वो 'वक़्त'
तय कर रहा था
नए रास्तों को
पल पल बीतते
वक़्त के साथ...."
बेहद छु लेने वही पंक्तियाँ हैं ......
बच्क्ग्रौंद म्यूजिक भी suport कर रह ह आपकी इस रचना को .....
बहुत बहुत शुभ-कामनाएं !!!
जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteलाजवाब......
ReplyDeleteविश्राम से उठने के बाद
ReplyDeleteमैं वहीँ था
जहाँ वक़्त ने मुझे छोड़ा था
और वो 'वक़्त'
तय कर रहा था
नए रास्तों को
पल पल बीतते
वक़्त के साथ.
बहुत बढ़िया ....सुंदर अभिव्यक्ति
वक़्त के गुलाम हैं सभी ,दौड़ना पड़ता है.बहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteवक्त के साथ चलना चाहिए , दौड़ना हानी कारक है
ReplyDeleteइस वक़्त को भी क्या कहें, थम सा गया है आज कल|
ReplyDeleteऔर भागता ही जा रहा है, बेवजह हर आदमी||
हम तो कहते थे हमारे पास वक़्त नही है
ReplyDeleteयहाँ आये तो मालूम हुआ
वक़्त को भी आस है वक़्त की
vaery good!!
ReplyDeletevery nice post chhotawriters.blogspot.com
ReplyDeleteachchhi rachna very nice
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
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