आज फिर वही खबर
दहेज की आग मे
जला एक घर
जल गए अरमान
जल गए सपने
गिर पड़ा पहाड़
टूट गए अपने
बस रह गयीं
वो लाड़ की
वो नाज़ों की बातें
बचपन की 'उसकी'
शरारतों की यादें।
आज फिर वही खबर
जिसे पढ़ा था कल
जिसे पढ़ा था परसों
जिसे पढ़ते पढ़ते
बीत गए बरसों
बरसों से चल रही है मुहिम
लोगों को समझाने की
परीक्षाओं मे बच्चों से
निबंध लिखवाने की
बीज के बोने की
पेड़ के होने की
फूल भी खिले
फल भी पके
मगर लालच की
शाखाओं को रोक न सके
और रुक न सकी
छपने से
आज फिर वही खबर ।
दहेज की आग मे
जला एक घर
जल गए अरमान
जल गए सपने
गिर पड़ा पहाड़
टूट गए अपने
बस रह गयीं
वो लाड़ की
वो नाज़ों की बातें
बचपन की 'उसकी'
शरारतों की यादें।
आज फिर वही खबर
जिसे पढ़ा था कल
जिसे पढ़ा था परसों
जिसे पढ़ते पढ़ते
बीत गए बरसों
बरसों से चल रही है मुहिम
लोगों को समझाने की
परीक्षाओं मे बच्चों से
निबंध लिखवाने की
बीज के बोने की
पेड़ के होने की
फूल भी खिले
फल भी पके
मगर लालच की
शाखाओं को रोक न सके
और रुक न सकी
छपने से
आज फिर वही खबर ।
na jane ye khabarein kab rukengi...
ReplyDeletesach bahut dukh hota hai...
aaj bhi ham wahi hai... jaha pahle the...
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ... कब खत्म होगा इन खबरों का सिलसिला...
ReplyDeleteभावमय करती प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक चित्रण किया है आज के हालात का।
ReplyDeleteआख़िर कब तक ? भावमय प्रस्तुति
ReplyDelete.... बहुत अच्छी और संवेदनशील रचना
ReplyDeleteएकदम अलग सोच के साथ...प्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteमन भीग गया पढ़ कर...
ReplyDeleteआज फिर वही खबर ....
ReplyDeleteना जाने कब थमेगा इन ख़बरों का सिलसिला...जिसे पढ़ते पढ़ते बीत गए बरसों...
सुंदर प्रस्तुती
ReplyDeleteक्या कहूं.. बहुत मार्मिक
ReplyDeleteशब्द नहीं कुछ कहने को
जाने कब से ये खबरें ऐसे ही चली आ रही हैं जैसे रोज़मर्रा की कोई साधारण बात हो .असल बात है इस मानसिकता को बदला जाय .
ReplyDeleteसब सच सुनाती..दर्द को बताती.. बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना..
ReplyDeleteरक्षाबन्धन की बहुत-बहुत शुकामनाएँ!
ReplyDelete--
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
संवेदनशील!!
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी.....संवेदनशील अभिव्यक्ति
ReplyDeleteVery soulful....
ReplyDeleteVery soulful... keep writing.. coz ppl lyk u have da power to awaken da senses of society.. :)
ReplyDeleteVery soulful poem.. ppl lyk u hav da power to awaken da senses of dis society.. so pls keep writing :)
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक रचना....
ReplyDeleteबहुत कुछ सोचने को मजबूर करता आलेख.
ReplyDeleteमगर लालच की
ReplyDeleteशाखाओं को रोक न सके
और रुक न सकी
छपने से
आज फिर वही खबर ।
यशवंत जी
बहुत सटीक प्रस्तुति, सोचने पर विवश करती रचना
ye khabren yun hi aati rahengi jab tak insaan ek doosre ki bhaavnaon ka samman nahi dega.bahut achchi prerak rachna likhi hai aapne.aapke blog par pahli baar hi aai hoon .aakar achcha laga.anusaran bhi kar rahi hoon.apne blog par aana ka nimantran bhi de rahi hoon.
ReplyDeleteविषय वही है पर प्रस्तुत करने का नजरिया अलग था..
ReplyDeleteइस आग में पूरे के पूरे परिवार और एक तरह से यह समाज भी जल रहा है..
इतनी शिक्षा के बावजूद ऐसा हो रहा है, यह हमारे लिए चिंता की बात है..
पहले मैं सोचता था कि यह निचले वर्ग के लोगों में ज्यादा होता है पर ऐसी खबरें पढ़कर लगता है कि निचले और उच्च वर्ग में ही यह सबसे ज्यादा हो रहा है..
बहुत ही शोचनीय स्थिति है..
इन्हें ख़बरें बनाने वाले भी हम में से ही कुछ लोग होते हैं|
ReplyDeleteबहुत दुखद है यह कि आज भी दहेज का दानव निर्दोष कन्याओं की बलि ले रहा है...यह समाज जग कर भी नहीं जगता....
ReplyDeleteपेड़ के होने की
ReplyDeleteफूल भी खिले
फल भी पके
मगर लालच की
शाखाओं को रोक न सके
और रुक न सकी
छपने से
आज फिर वही खबर ।
haan aesa hi hai hum bade hogaye pr khabren vahin hai kash kuchh achchha badlav ho
rachana
Bahut sundar kavita, par marmik...
ReplyDeleteरक्षाबंधन पर्व पर सभी को बधाई !!
इन ख़बरों को बदलने की लिए खुद को बदलना होगा ... समाज की इन कुरीतियों को बदलना होगा ... मार्मिक रचना है ...
ReplyDelete[b]आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद[/b]
ReplyDeletevery emotional !!!
ReplyDeleteमन तार-तार हो गया..आह..!
ReplyDeleteआज फिर वही खबर
ReplyDeleteदहेज की आग मे
जला एक घर
जल गए अरमान
जल गए सपने
गिर पड़ा पहाड़
टूट गए अपने
बस रह गयीं
वो लाड़ की
वो नाज़ों की बातें
बचपन की 'उसकी'
शरारतों की यादें।
aakhen nam ho gaee padhkar. marmik hradayaisparshee rachana.aapka abhar.
Bahut acchhe maathur Sahab..Aabhar..
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