सुबह सुबह
सूरज के निकलने तक
कभी सुनाई देती थी
पास की मस्जिद से आती
अज़ान की आवाज़
मंदिर मे बजते घंटों की आवाज़
चिड़ियों की चहचहाहट
जिसके सुर मे सुर मिला रहे हों
हवा के ताज़े झोंके ।
मैं आज भी सुबह उठा
मगर वह सुबह नदारद थी
कान मे हेड फोन लगाए
कुछ लोग सुन रहे थे
मुन्नी के बदनाम गीत
एग्झास्ट फैन से टकराते
हवा के सुस्त झोंके
वापस लौट जा रहे थे
सेठ जी के ए सी पर
नो एंट्री का बोर्ड देख कर
कितना फर्क हो गया है
बचपन की वह उच्छृंखल
वह बिंदास सुबह
अब सकुचती हुई
दबे पाँव आती है
और लौट जाती है
सूरज की किरणों के
गरम मिजाज को देख कर।
बिल्कुल सच कहा कहाँ रहे वो दिन वो रातें।
ReplyDeleteवह बिंदास सुबह
ReplyDeleteअब सकुचती हुई
दबे पाँव आती है
और लौट जाती है
सूरज की किरणों के
गरम मिजाज को देख कर.......बहुत सही लिखा . अल्साई सुबह आज के गर्म माहोल को देख शायद घब्ररा जाती है डरी हुई उदास लगती है.....
jane kahan gae wo din
ReplyDeleteवाह कितनी भीनी मदमस्त कर देने वाली है रचना…………………शानदार दिल को छू गया।
ReplyDeleteचिड़ियों की चहचहाहट
ReplyDeleteजैसे सुर मे सुर मिला रहे हों
हवा के ताज़े झोंके ।
बहुत ही सुन्दर पंक्ति लगी साथ ही आपकी कविता भी बेहतरीन लगी......आभार
बहुत सुंदर कविता ! सुबह तो सुबह ही है मन ही है जो इसमें नए नए रंग भरता है...
ReplyDeleteसच कहा यशवंत भाई .. अब सब कुछ बदल सा गया है ,, जिंदगी बहुत ज्यादा fast forward हो गयी है .. बहुत अच्छी नज़्म के लिये दिल से बधाई !!
ReplyDeleteआभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
बहुत खूब लिओखा है ...
ReplyDeleteसच है वो सुबह कभी तो आयगी ...
Change is the only constant thing in dis world... thoughtful lines
ReplyDeleteसही कहा ....अब सुबह उतनी हसीन. नहीं लगती........
ReplyDeleteबदलाव स्पष्ट दृश्यमान है!
ReplyDeleteजाने कहाँ गए वो दिन ...सुन्दर पोस्ट...
ReplyDeleteनीरज
सच्चाई से कही गयी बात अब किसको दोष दें वक्त या खुद को ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.....समय के बहुत कुछ बदल जाता है....
ReplyDeletewaah... isiliye to bachpan khas hota hai... madmast pawan ki tarah udta hua aur sooraj kee roshni sa ujjwal...
ReplyDeletena jane ham bade q ho gaye???
खुबसूरत सुबह.... जिसका सभी को इंतजार है....
ReplyDeleteकितना फर्क हो गया है
ReplyDeleteबचपन की वह उच्छृंखल
वह बिंदास सुबह
अब सकुचती हुई
दबे पाँव आती है
और लौट जाती है
सूरज की किरणों के
गरम मिजाज को देख कर।
..... और सरे दिन थका हारा मन यही सोचता है - सुबह कहाँ से लौटाई जाये
Bahut dinon baad kuchh achchha padha. Shubhkamnayen...
ReplyDeleteवाह......बहुत खूब..........सच सब कुछ ही बदल गया है.........नहीं बदले तो हमारे जैसे कुछ गिने-चुने लोग......कभी लगता है जैसे वक़्त हम जैसों को कहीं पीछे न छोड़ जाये|
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क
वह बिंदास सुबह
ReplyDeleteअब सकुचती हुई
दबे पाँव आती है
और लौट जाती है
सूरज की किरणों के
गरम मिजाज को देख कर.....
वास्तव में भूलते जा रहे हैं लोग सुहानी सुबह का सुख
बदल देता है जमाना रेशमी ढंग
ReplyDeleteफ़ैल जाते है बदरंग, रंग
बधाई यशवंत जी
बहुत ही बढि़या ... ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteशनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....और अपने अमूल्य विचार भी दें ..आभार.
ReplyDeleteसच है आज कल सुबह भी बदल गयी है ..यही नज़ारा होता है सब जगह ..यथार्थ को कहती अच्छी रचना
ReplyDeletebilkul sahi..samay sab kuchh badal deta hai...
ReplyDeleteयशवंत..सच कोई लौटा दे मेरे वो बीते हुए दिन
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसुबह सुबह
ReplyDeleteसूरज के निकालने तक
कभी सुनाई देती थी
पास की मस्जिद से आती
अज़ान की आवाज़
मंदिर मे बजते घंटों की आवाज़
चिड़ियों की चहचहाहट
जिसके सुर मे सुर मिला रहे हों
हवा के ताज़े झोंके ।
इसमें थोडा सा ठीक करो दोस्त ......सूरज के निकालने तक ....इस लाइन में ..निकलने होगा न ?
बहुत सुन्दर रचना |
एग्झास्ट फैन से टकराते
ReplyDeleteहवा के सुस्त झोंके
वापस लौट जा रहे थे
सेठ जी के ए सी पर
विविधता को सहज ही nirupit karti sundar panktiyaan
वो सुबह भी आयेगी...अच्छी रचना,.
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