जो कह सके न कोई
वो तीखी बात हूँ मैं
जो सह सके न कोई
वो जज़्बात हूँ मैं
मैं प्रेम भी हूँ
विरह भी हूँ
राजनीति भी हूँ
कूटनीति भी हूँ
मैं वोट भी हूँ
चोट भी हूँ
मैं खारा भी हूँ
मीठा भी हूँ
मैं आग हूँ तूफान हूँ
मैं क्रान्ति का राग हूँ
मैं मसखरा किन्तु खरा
शीतलता औ अनुराग हूँ
तुम जो समझना चाहो
समझते रहना मुझको
कभी शैतान का अक्स
कभी अफलातून हूँ मैं
कार्टून हूँ मैं !
वो तीखी बात हूँ मैं
जो सह सके न कोई
वो जज़्बात हूँ मैं
मैं प्रेम भी हूँ
विरह भी हूँ
राजनीति भी हूँ
कूटनीति भी हूँ
मैं वोट भी हूँ
चोट भी हूँ
मैं खारा भी हूँ
मीठा भी हूँ
मैं आग हूँ तूफान हूँ
मैं क्रान्ति का राग हूँ
मैं मसखरा किन्तु खरा
शीतलता औ अनुराग हूँ
तुम जो समझना चाहो
समझते रहना मुझको
कभी शैतान का अक्स
कभी अफलातून हूँ मैं
कार्टून हूँ मैं !
सही है...
ReplyDeleteअफलातून हैं आप...
:-)
बहुत सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
कार्टून का संवाद अच्छा लगा ...
ReplyDelete:)
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteकल 15/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है !
क्या वह प्रेम नहीं था ?
धन्यवाद!
वाह! अब कुछ नहीं बचा ... जो बांकी बचा ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति !
बहुत सही यशवंत जी....हमे तो कार्टून पसंद है.....अगर आप डिज़नी के हैबं तो हिट हैं :-)
ReplyDeleteयशवंत जी ...कार्टून के साथ साथ ...एक इंसान भी हैं आप
ReplyDeleteयशवंत जी कार्टून के साथ साथ ...एक अच्छे इंसान हैं आप
ReplyDeleteअंदाज काफी अच्छा लगा ....
ReplyDeleteYashwant ji
ReplyDeletebahut badhiya likha aapne.
अच्छा है.....
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...बहुत अच्छी बात कही है आपने...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
आप महान है जो भी हैं :)
ReplyDeleterachna bahut hi achchhi hai ,ye bhi khoob hai .
ReplyDeleteबहुत सुंदर , एक अलग सी रचना
ReplyDeleteशायद कुछ कमी रह गयी लिखने मे या मैंने भूमिका नहीं लिखी जिसकी वजह से मुझे ऐसा लगता है कि पाठकों ने इसे मेरे लिए मेरी कविता समझ लिया :(
ReplyDeleteजबकि लिखने का मंतव्य उस कार्टून की बात कहना था जो हम पत्रिकाओं और समाचार पत्रों मे रोज़ देखा करते हैं।
sach me aflatun... kuchh bhi maskhari me hi kar deta hai:)
ReplyDeleteप्रेम भी हूँ
ReplyDeleteविरह भी हूँ
राजनीति भी हूँ
कूटनीति भी हूँ
अपनी अभिव्यक्ति मे अफलातून....:)
सारगर्भित,सब कुछ हूँ मैं...
ReplyDeleteसुंदर प्रसतुति।
एक अलग ही मूड़ में लिखी है शायद इसी लिए अलग सी लग रही है.बहुत ही सुन्दर..अलग अंदाज..
ReplyDeleteमैं प्रेम भी हूँ
ReplyDeleteविरह भी हूँ
राजनीति भी हूँ
कूटनीति भी हूँ
मैं वोट भी हूँ
चोट भी हूँ
मैं खारा भी हूँ
मीठा भी हूँ
wah kya khoob likha hai ....apke sandrbhon se kavita ka maja doona ho gaya Bhai mathur ji.
बहुत खूब....
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteGajab ki pankityaan sirji...
ReplyDeleteCartoon bhi saahitya ki tarah hoti hai..
bhaavnaao ko jazbaato ko bayaan karne ka lajawaab maadhyam..
cartoon k dil ka haal bahut khoob bayaan kiya.. behtareen khayaalo se saji hui rachna :)
तुम जो समझना चाहो
ReplyDeleteसमझते रहना मुझको.waah yashwant jee aapki aavaj bhi bdi mithi hai.thanks.
बहुत खूब।
ReplyDeleteसुन्दर, बहुरंगी!
ReplyDeleteमस्त :))))
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
वाह अफलातून कार्टून जी की अभिव्यक्ती बेहद पसंद आई । आपको बधाई ।
ReplyDeleteछोटा। गंभीर।
ReplyDeleteआड़ी टेढी रेखाओं में करता सीधी बात
ReplyDeleteकहीं करूँ मैं गुदगुदी और कहीं आघात.
कार्टून के उद्गार पसंद आये..............
bahut prabhavshali abhivyakti
ReplyDeleteजो मन कहें उसी के खूबसूरत मर्म का उदहारण है.एक कार्टून के दर्द को अल्फाज़ देते शब्द लाजबाब हैं.देखने में भले ही छोटा लगे लेकिन चोट बेबाक,गम्भीर और मार्के का करता है.एक बेहतरीन कविता है...
ReplyDeleteसादर!
जो मेरा मन कहें के भाव से निकले हुए शब्द कार्टून को एक नई उर्जा से भर रहा है.
ReplyDeleteछोटे आकार का होकर भी गम्भीर,बेबाक और मर्म को स्पर्श करते हुए मार्के की बात सहज ही कर जाता है...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर...!
"मैं मसखरा किन्तु खरा"
ReplyDeleteक्या बात कही है! वाह !
बहुत खूब .. इन सब के साथ रह के अगर इंसान भी बने रह सकें तो कितना अच्छा हो ... बहुत लाजवाब ...
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