देख रहा हूँ
फिर उस ओर
पीछे मुड़ कर
की थी जिधर से शुरुआत
चलने की
बहुत पीछे कहीं
गुमनाम हो कर
खो चुके हैं अस्तित्व
शुरुआती कदमों के निशान
मगर फिर भी
मन हो रहा है
फिर से उस ओर जाने को
ढूंढ लाने को
बीता कल
प्रकट रूप मे
जो संभव नहीं
चाहने से
बस उस ओर
देखते रहना है
रह रह कर
ताकना है
उस जमीं को
बुला रही है
खींच कर
अपनी ओर
अफसोस
मजबूरी है
आज मे जी कर
बुनते रहना है
आने वाले
कल के ख्वाब
बीते कल की
तड़प से
बेखबर
हो कर ।
फिर उस ओर
पीछे मुड़ कर
की थी जिधर से शुरुआत
चलने की
बहुत पीछे कहीं
गुमनाम हो कर
खो चुके हैं अस्तित्व
शुरुआती कदमों के निशान
मगर फिर भी
मन हो रहा है
फिर से उस ओर जाने को
ढूंढ लाने को
बीता कल
प्रकट रूप मे
जो संभव नहीं
चाहने से
बस उस ओर
देखते रहना है
रह रह कर
ताकना है
उस जमीं को
बुला रही है
खींच कर
अपनी ओर
अफसोस
मजबूरी है
आज मे जी कर
बुनते रहना है
आने वाले
कल के ख्वाब
बीते कल की
तड़प से
बेखबर
हो कर ।
देख रहा हूँ
ReplyDeleteफिर उस ओर
पीछे मुड़ कर
की थी जिधर से शुरुआत
चलने की.....
और आज भी देख रहे हैं उधर ही.....
उस जमीं को
Deleteबुला रही है
खींच कर
अपनी ओर very nice.
समय के तानेबाने और जीवन की जद्दोज़हद की बात ...सुंदर लिखा है....
ReplyDeleteकल आज और कल का सफ़र तो कहते ही रहना है!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत अच्छी प्रस्तुति,.....
ReplyDeleteशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
MY NEW POST ...सम्बोधन...
सच ही कहा है यशवंत जी, यह बीता कल बरबस ही हमें अपनी ओर खींचता रहता है ओर हम कुछ क्षण के लिए फिर उन्ही लम्हों को पुनः जीना चाहते है....... बहुत गहन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteयही तो वर्तमान का दुखडा है...
ReplyDeleteभूत और भविष्य के बीच पिसता है...
अच्छी रचना
सस्नेह.
मजबूरी है
ReplyDeleteआने वाले कल के ख्वाब बुनना ही होता है अतीत की तड़प से बेखबर होकर...
गहन अभिव्यक्ति....
पीछे मूड कर देख तो सकते हैं ॥पर बढ्न तो आगे ही है ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच
ReplyDeleteपर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
बुनते रहना है
ReplyDeleteआने वाले
कल के ख्वाब
सही कहा, यूँही करते रहते हैं हम
http://www.poeticprakash.com/
ekdaum yatharth....good...
ReplyDeleteबीते कल की तड़प से बेखबर होकर ...
ReplyDeleteआज कल का खवाब बुन लिया ...
सुन्दर रचना .बधाई .
ReplyDeleteYashwant ji
ReplyDeletesabse pehle is khubsurat rachna ke liye
aapko badhai.
insaan vartmaan main reh kar,
bhavishy ki aur dekhta hain
jo beet gaye hain pal jeevan ke,
use yaadon main sanjo kar rakhta hain.
vaapis beete lamho main chah kar bhi
lauta nahi jaa sakya.
अतीत का मोह और भविष्य की कल्पना दोनों ही स्वप्न हैं..जीना तो वर्तमान में ही है...
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर रचना....
ReplyDeleteसादर.
गहन अभिव्यक्ति.....अतीत से मुक्त होना बहुत कठिन है ।
ReplyDeleteवाह ..बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइन ख्याबो की दुनिया की बात ही अलग हैं ...
ReplyDeletesach apni majboori khud hi behatar dhang se jaanta hai majboori mein jeeta insan....
ReplyDeletebahut sundar yatharthparak rachna..
कल को भुला कर ख्वाब सजाते रहना ही तो जिन्दगी है..... बहुत ही सुन्दर रचना.....
ReplyDeletebahut hi sundr rachna hai ,man chhu gaee
ReplyDeleteअफसोस
ReplyDeleteमजबूरी है
आज मे जी कर
बुनते रहना है
आने वाले
कल के ख्वाब
बीते कल की
तड़प से
बेखबर
हो कर ।...बहुत गहन अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteदो लाइन कहना चाहूंगी .......
बीते कल कि यादों को याद करके रोता है |
देखो न अब भी ये बालपन रह रहकर मचलता है |
अफसोस
ReplyDeleteमजबूरी है
आज मे जी कर
बुनते रहना है
आने वाले
कल के ख्वाब
बीते कल की
तड़प से
बेखबर
हो कर ।
shayad yahi jeevan hai
sunder
rachana
बहुत पीछे कहीं
ReplyDeleteगुमनाम हो कर
खो चुके हैं अस्तित्व
शुरुआती कदमों के निशान
मगर फिर भी
मन हो रहा है
फिर से उस ओर जाने को
ढूंढ लाने को
बीता कल
प्रकट रूप मे
जो संभव नहीं
चाहने से
मन के देहरी पर दस्तक देते आपके मनमोहक भाव अति सुन्दर हैं...
सादर..!
अनुपम, अच्छी प्रस्तुति,.....
ReplyDeleteMY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
बहुत ही सुन्दर , गहन भावाभिव्यक्ति है
ReplyDeleteएक गीत याद आ गया,,,
ये जीवन है इस जीवन का यही है यही है रंग रूप
थोड़े गम ,थोड़ी खुशिया,,,,
बहुत ही बेहतरीन रचना है....
सुंदर लिखा है..
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