आज
न गणतन्त्र दिवस है
न स्वतन्त्रता दिवस है
न होली है आज
न दिवाली है
न 'सितारों' का जन्म दिन है
न किस्मत के खुलने का दिन है
मई का पहला दिन है
दिन है जो आधार है
मुट्ठी मे बंद संपन्नता का
दिन है जो आधार है
स्वतन्त्रता का
दिन है उनका
जिनके अरमान
शोषण की दीवाली
मनाते हुए
अपेक्षाओं के आसमान मे
हर रोज़ बिखरते हैं
और उनकी बारूदी महक
दबा कर रख दी जाती है
सहेज दी जाती है
मौकापरस्ती की होली
एक दिन मनाने को
दिन है उनका
जिनके हाथ
अगर थम जाएँ
खेतों खलिहानों मे
कारखानों मे
तो मयखानों के
सुरूर मे डूबे
शरीफ
ताकते रह जाएँ अपनी राह
मगर
यह दिन है जिसका
वो जीता है
अपने ही उसूलों पे
गीता के कर्म पे
जीवन के मर्म पे
वो गतिशील है
प्रगतिशीलता के लिये
स्थिरता के लिये
शायद तभी
इतना खामोश है
आज का दिन
मई का पहला दिन।
>>>>यशवन्त माथुर <<<<
बेहद सुंदर..... सटीक अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसंवेदनशील ....बहुत सुंदर रचना .....
ReplyDeleteमजदूरों का जीवन ...बहुत ही प्रभावी प्रस्तुती ....
शब्द ढूँढ रही हूँ तारीफ़ के लिए ....
इस बार बंगाल में छुट्टी रहेगी ?
ReplyDeleteAnupama Tripathi :- शब्द ढूँढ रही हूँ तारीफ़ के लिए .... !!
ReplyDeleteमिले तो मुझे भी बता दीजिएगा .... !!
अगर थम जाएँ
खेतों खलिहानों मे
कारखानों में
*गृहणी को भी शामिल क्यों नहीं करता कोई ??
तो मयखानों के
सुरूर मे डूबे
शरीफ
ताकते रह जाएँ अपनी राह
कडवी मगर सच .... !!
श्रम दिवस पर सटीक,सुन्दर अभियक्ति....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना... श्रम दिवस के विचार को आपकी कविता ने सुन्दरता से प्रस्तुत किया है...
ReplyDeleteExcellent & meaningful lines, signifying the importance of Labour on this day. Compliments Yashwant ji.
ReplyDeleteRegards!
यही तो मजदूरों के भाग्य की विडम्बना है,
ReplyDeleteसटीक,सुन्दर अभिव्यक्ति ....
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
बहुत सुंदर भाव ....
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबेहद मार्मिक लिखा है सच्चाई से कटाक्ष करती उत्तम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया यशवंत......................
ReplyDeleteधारदार लेखनी है आपकी.....
बेहतरीन रचना के लिए बधाई....
सस्नेह.
bahut sundar aur sarthak post
ReplyDeleteवो गतिशील है
ReplyDeleteप्रगतिशीलता के लिये
स्थिरता के लिये
शायद तभी
इतना खामोश है
आज का दिन
मई का पहला दिन।
बहुत सार्थक प्रस्तुति.
यह दिन है जिसका
ReplyDeleteवो जीता है
अपने ही उसूलों पे
गीता के कर्म पे
जीवन के मर्म पे
वो गतिशील है
प्रगतिशीलता के लिये
स्थिरता के लिये
शायद तभी
इतना खामोश है
आज का दिन
मई का पहला दिन।
..........saamyik lekh.....
बहुत सुन्दर .. समसामयिक रचना
ReplyDeleteमई दिवस पर सार्थक चिंतन कराती सुन्दर रचना ...आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बिडम्बना है यह ..सबकुछ देखते हुए भी कितना दूर रहता है इनसे हमारा समाज..
श्रमिक दिवस पर सुन्दर अभियक्ति....
ReplyDeleteमजदूर दिवस पर एक सार्थक कविता...बहुत सुन्दर..य़शवन्त...
ReplyDeleteश्रमिक दिवस पर बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteएकदम सटीक एवम सार्थक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसादर शुभकामनायें!
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteश्रमिक दिवस पर सटीक एवम सार्थक अभिव्यक्ति....... शुभकामनायें!
ReplyDeleteश्रमिकों के त्याग और श्रम को सलाम..सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeletevery touching creation.
ReplyDeleteभावनात्मक खूबसूरत अंदाज में लिखी सुन्दर रचना |
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