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03 June 2012

गोरख धंधा

सोच रहा हूँ शुरू करूँ
आज से मैं भी गोरख धंधा
चार आँखें हों चढ़ी नाक पे
बोलूँ फिर भी खुद को अंधा

कैसा होगा ऐसा धंधा
जिसमें पैसा -रुपया होगा
अकल घुलेगी घुटी भांग संग
बाप बड़ा न भैया होगा

ऐसा धंधा चोखा होगा
जिसमे केवल धोखा होगा
एक भरेगा अपना झोला
लुट पिट रोना दूजा होगा

चार अक्षर चालीस छपेंगे
घट बढ़ गड़बड़ मोल भरेंगे
इस धंधे की माया ऐसी
मोल तोल मे झोल करेंगे

माफ करो मुझ से नहीं होगा
कैसे मन ने सोचा ऐसा
रूख सूख का गरूर है खुद को 
नहीं चाहिये खोटा पैसा

गोरख धंधा,गोरख धंधा
अरबों का है मूरख धंधा
आज ऊंच कल नीच पड़ेगा
मंदा होगा जब ये धंधा 

तब मत कहना मुझ को अंधा।

©यशवन्त माथुर©

28 comments:

  1. लाजवाब रचना,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...


    Rajpurohit Samaj!
    पर पधारेँ।

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,,

    RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,

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  3. bahut khoob likha hai aapne sach hai hridya ki uh-poh kuchh bhi kahe apne ko burai mein dhaalna asaan nahi.
    shubhkamnayen

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  4. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  5. superb....

    सोच रहा हूँ शुरू करूँ
    आज से मैं भी गोरख धंधा
    चार आँखें हों चढ़ी नाक पे
    बोलूँ फिर भी खुद को अंधा

    ज़रूरत नहीं सोचने की....
    यशवंत...अब तो शुरू हो जाएँ...!

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  6. माफ करो मुझ से नहीं होगा
    कैसे मन ने सोचा ऐसा
    रूख सूख का गरूर है खुद को
    नहीं चाहिये खोटा पैसा

    ....बहुत सच कहा है....संतुष्टी सबसे बड़ा धन है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  7. नहीं भाई ,ऐसा मत करना | खूब लिखा है यशवंत तुमने |

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  8. सच कहा येसे धंधे से न तो बरकत होती है न ही मन को सकून मिलता है...बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  10. बेहतरीन...इसे ही संस्कार कहते हैं...गोरखधंधा करना सम्भव नहीं|

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  11. शुरू की पंक्तियाँ पढ़ कर लग रहा था ये आप किधर चल दिये ,बाद में -
    'माफ करो मुझ से नहीं होगा
    कैसे मन ने सोचा ऐसा'
    - ने बता दिया आप बिलकुल ठीक-ठाक हैं .
    कुशल बनी रहे !

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  12. *चार अक्षर चालीस छपेंगे
    घट बढ़ गड़बड़ मोल भरेंगे
    इस धंधे की माया ऐसी
    मोल तोल मे झोल करेंगे*
    पढ़ कर कुछ सोच में ही थी कि

    *गोरख धंधा,गोरख धंधा
    अरबों का है मूरख धंधा
    आज ऊंच कल नीच पड़ेगा
    मंदा होगा जब ये धंधा*

    संतोष हुआ .... !! समय के साथ नहीं बदलना ..... !!

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  13. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  14. अरे नहीं बाबा....
    दूर ही रहने में भलाई है गोरख धंधों से...

    सस्नेह

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  15. सच में-तुमसे नहीं हो पायेगा......सबके बस की बात नहीं यह गोरख धंधा...

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  16. बहुत बढ़िया.......सटीक, सार्थक और सामयिक पोस्ट........

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  17. बहुत बढ़िया.......सटीक, सार्थक और सामयिक पोस्ट........

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  18. वाह ... बेहतरीन ।

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  19. समयानुकूल प्रस्तुति...!

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  20. वाह रे गोरख धंदा ।

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  21. .......प्रभावशाली प्रस्तुति

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  22. बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

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  23. बहुत ही सशक्त और प्रभावशाली रचना है....
    बुरे काम का बुरा नतीजा होता है
    देर से ही सही फल तो भुगतना ही है....

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  24. जो गलत है वो गलत ही रहेगा.....भले ही वो क्षणिक लाभ प्रदान करता हो परन्तु दीर्घकालिक सन्तुष्टि नहीं प्रदान कर सकता
    सुन्दर रचना यशवन्त भैया

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  25. यशवंत जी , ये गोरखधंधा आप जैसे सीधे सरल लोगों के लिए नहीं है ..... बढ़िया पोस्ट!

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  26. शानदार भावों से सजी पोस्ट।

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