ए वक़्त !
बस इतना सा एहसान कर दे
धूल के गुबार की तरह
मेरा ज़र्रा ज़र्रा उड़ता जाए
और कहीं खो जाए
ज़मीं पर गिरने से पहले।
©यशवन्त माथुर©
बस इतना सा एहसान कर दे
धूल के गुबार की तरह
मेरा ज़र्रा ज़र्रा उड़ता जाए
और कहीं खो जाए
ज़मीं पर गिरने से पहले।
©यशवन्त माथुर©
gahan abhivyakti
ReplyDeleteसुन्दर ||
ReplyDeleteइस दो गज जमीन से कहां छुटकारा है यशवंत जी ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा बात कही है ...
बहुत सुन्दर अहसास....
ReplyDeleteहुर्रर्रर्रर्रर्रर्र...
ReplyDeletewaah !
ReplyDeletebahut sundar...
ReplyDeleteवाह...बेजोड़ क्षणिका...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
धुल के गुबार की तरह क्यूँ ...बादलों की तरह उडो......
ReplyDeleteऔर जम कर बरसो.......
:-)
सस्नेह
बहुत सुंदर
ReplyDeleteBahut Sunder
ReplyDeleteमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
ReplyDeleteपैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच ।
गहन चिंतन...
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDelete*मेरा ज़र्रा ज़र्रा उड़ता जाए
ReplyDeleteऔर कहीं खो जाए*
नहीं - नहीं .... खोये नहीं ,हर ज़र्रा से यश फैले जिसका कभी भी अंत ना हो .... :)
वैसे ज़मीन से जुड़े रहने का अपना मज़ा है ...है न !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteआपके ऐसा बेज़ार होने को मैं तनिक हँस कर देख रहा हूँ :))
ReplyDeleteबेहतरीन !!!!
ReplyDeleteon mail by Yashoda Agarwal Ji
ReplyDeleteए वक़्त !
बस इतना सा एहसान कर दे..........
क्या बात है..असाधारण सोच..
khubsurat
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना,,,,,
ReplyDeleteगहन भाव ... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत भावमई अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत भावमई अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteati sundar
ReplyDeletebhavpoorn kshanika..
ReplyDeleteछोटी परन्तु अच्छी रचना!
ReplyDelete