अभी तक
कुछ नहीं है मन में
फिर भी
मन हो रहा है
कुछ करने का
कुछ कहने का
यह आदत है
मजबूरी है
या नौकरी
नहीं पता
बस
बाहर होती
रिमझिम को देख कर
नहा धो कर
ताजगी से
खिलखिलाती घास-
फूल-पत्तियों को देख कर
सोच रहा हूँ
लौट जाऊं
फिर से बचपन की ओर
और कौतूहल से
निहारता रहूँ
आते -जाते,
बिखरते-सिमटते
काले बादलों को
उन कुछ पलों तक
जब तक
मन न भरे।
©यशवन्त माथुर©
कुछ नहीं है मन में
फिर भी
मन हो रहा है
कुछ करने का
कुछ कहने का
यह आदत है
मजबूरी है
या नौकरी
नहीं पता
बस
बाहर होती
रिमझिम को देख कर
नहा धो कर
ताजगी से
खिलखिलाती घास-
फूल-पत्तियों को देख कर
सोच रहा हूँ
लौट जाऊं
फिर से बचपन की ओर
और कौतूहल से
निहारता रहूँ
आते -जाते,
बिखरते-सिमटते
काले बादलों को
उन कुछ पलों तक
जब तक
मन न भरे।
©यशवन्त माथुर©
badhiya kavita yashvant bhai... bachpan hamare bhitar taaumr jinda rahta hai
ReplyDeleteलौट जाऊं
ReplyDeleteफिर से बचपन की ओर
और कौतूहल से
निहारता रहूँ
आते -जाते,
बिखरते-सिमटते
काले बादलों को
चलो साथ चलते हैं
बहुत दिनों से
मेरा भी मन कर रहा है .... :)
badi sundar panktiyan hai yaswant jee....
ReplyDeletelout jau fir bachpan ki aur....
ReplyDeleteजो मन कहे वो करो.....
ReplyDeleteऔर बच्चा बनना अच्छा है...
अपने भीतर के बच्चे को कभी बड़ा न होने देना यशवंत...
सस्नेह
अनु
बड़े हो गए हैं, लोग क्या कहेंगे यह सोचकर हम स्वयं को कितने सहज-सुलभ सुख से वंचित कर लेते हैं।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
अच्छा तो यह होगा कि बाल-मन के साथ बरसात में नहाने निकला जाए. बचपन की याद दिला गई कविता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना यशवंत जी..
ReplyDeleteमन बच्चा है
ReplyDeleteइसलिए सच्चा है
कभी कभी बच्चा होना भी
बहुत अच्छा है..
:-) :-)
रिमझिम को देख कर रुकना नहीं चाहिए ..
ReplyDeleteबाहें खोल कर समां लेना चाहिए उन बेहिसाब बरसती बूंदों को ..
जाने ये पल फिर आये न आये..
आखिर एक बचपना हम सभी के मन में है ..
बहुत ही सुन्दर कविता भाई यशवंत जी |
ReplyDeleteजब मन कहे जी लेना चाहिए बचपन के उन पलों को जब तक मन न भरे... बहुत सुन्दर भाव...
ReplyDeleteकाश कि हम सब लौट पाते फिर ...जीवन की व्यस्तताओं को छोड़कर ....
ReplyDeleteयशवंत जी नमस्ते ,
ReplyDeleteकुछ समय पूर्व मेरे छोटे भाई के निधन से विचलित हो कर ब्लोगिंग भी भूल गई थी |आज आपकी पोस्ट ने आशा दिखाई
आदरणीया संगीता जी
Deleteबहुत दुख हुआ यह जान कर । ईश्वर से कामना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।
Aur yaswant Bhai Kaise ho. Tumhe pad kar aur dekhkar achaa lag.(devendra Singh Mehta)
ReplyDeleteबस भाई बढ़िया हैं। आप कैसे हो ?
Deleteपसंद करने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया।
लौट जाऊं
ReplyDeleteफिर से बचपन की ओर
और कौतूहल से
निहारता रहूँ
आते -जाते,
बिखरते-सिमटते
काले बादलों को
उन कुछ पलों तक
जब तक
मन न भरे।
बालक मन जितना सोचे कम
बचपन की याद दिलाती प्यारी रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,
बचपन तो बचपन ही होता है ..फिर कौन बड़ा होना चाहता है..?सुन्दर भाव ...शुभकामनाएं यशवन्त..
ReplyDeleteबहुत बढिया ।
ReplyDeleteबचपन में लौटना सबको अच्छा लगता है !
ReplyDeleteकोमल भाव से सजी अच्छी रचना !
आभार !
बहुत सुन्दर भाव ... बधाई :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ... बधाई :)
ReplyDeleteआपकी ख्वाहिशों को पंख लग जाएँ...
ReplyDeleteबादलों को देखो, रिम-झिम बौछारों को देखो,
ReplyDeleteघर की छत पर हर नाली को बंद कर...
एक नदी बना लो...
फिर उसमें खुद भी तैर लो.....
और काग़ज़ की कश्ती भी तैराओ... :-)
~God Bless !!!
बचपन के दिन भी क्या दिन थे .... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनिहारता रहूँ
ReplyDeleteआते -जाते,
बिखरते-सिमटते
काले बादलों को
उन कुछ पलों तक
जब तक
मन न भरे।
बरसात मे बचपन ज़रूर याद आता है ...!!
मधुर यादें भी दे जाता है ...!!
शुभकामनायें यशवंत ...!!
bhaut hi sunder rachna....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है यशवंत जी!
ReplyDeleteमन यूँ ही क्या क्या चाह लेता है... सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteपढ कर हर किसी का मन एक बार तो बचपन के उस आंगन को जरूर झाँक आया होगा जिसके किसी कोने में आज भी हमारी शरारतें हमारा इन्तजार कर रही हैं , और यही इस कविता के सफलता है
ReplyDeleteबिखरते-सिमटते
ReplyDeleteकाले बादलों को
उन कुछ पलों तक
जब तक
मन न भरे।....
सुन्दर रचना, बधाई....
बादलों और फुहारों को निहारते हुए कभी मन नहीं भरता...
ReplyDeleteसुंदर रचना!!
Beautiful creation..
ReplyDeletebachpan ko hum abhi bhi jinda rakh sakte hai :) Very Nice Poetry :)
ReplyDeleteबचपन की यादें ताज़ा कराती हुई ,,,बहतरीन रचना...
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग आपके इन्जार में,समय निकाल कर पधारिएगा-
"मन के कोने से..."
आभार..!
बहुत प्यारी-सी कविता
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