मैदानों में
ढलानों में
घर के लानों में
खेत-खलिहानों में
बागानों में
सड़कों के किनारों में
कवि के विचारों में
बारिश की रिमझिम फुहारों में
धरती का मखमली
गुदगुदा बिस्तर बनने का सुख
घास को हासिल है
घास
आस है
विश्वास है
दर्शन है
उपहास -परिहास है
घास
स्वाभिमान है -
तूफानों में
खुद को झुका लेती है
हो जाती है नत-मस्तक
छद्म -क्षणिक प्रभुत्व के आगे
और बाद की शांति में
हो जाती है
पूर्व की तरह अडिग
उठा लेती है खुद को
घास
निडरता का
प्रत्यक्ष प्रतीक
बन कर
खोद कर
उखाड़ कर
फेंक दिये जाने पर भी
धरती के भीतर
छोड़ देती है
अपना अंश
हो उठती है
पुनः जीवंत
महलों के चमकते
फर्श के किनारों पर
मौका पाते ही
घास
सिर्फ घास ही नहीं
गीता में लिखा
जीवन का मर्म है
जिसका उद्देश्य
निरंतर कर्म है।
©यशवन्त माथुर©
घास
ReplyDeleteसिर्फ घास ही नहीं
गीता में लिखा
जीवन का मर्म है
जिसका उद्देश्य
निरंतर कर्म है।
..सच प्रकृति में कितना कुछ है सीखने-देखने को बस सबकुछ हम इंसान देख नहीं पाते! समझ नहीं पाते!...
बहुत बढ़िया
बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
रविकर जी यह तो इसे बचपन से बताया-सिखाया था ,आज इसने काव्यात्मक रूप से सार्वजनिक कर दिया। आपको पसंद आया धन्यवाद। फतह-जीत हासिल करने का नुस्खा है इस 'घास-दर्शन' मे।
Deleteबढ़िया बढ़िया बहुत ही बढ़िया.....
ReplyDeleteसच्ची यशवंत बहुत सुन्दर रचना....
सहज सी चीज़..सहज शब्दों में गहन अभिव्यक्ति...
सस्नेह
अनु
बेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteविनम्रता से झुकना भी सिखाती है ये नन्ही-नन्ही घास... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeletenamaskaar yashwant ji bahut sundar abhivyakti aur madhur sangeet ke saath aur bhu=i sundar karn priye ho gayi , anand aa gaya blog par aakar .........purane sangeet ka anand bhi sirf aapke blogs par hi milta hai
ReplyDeleteघास
ReplyDeleteसिर्फ घास ही नहीं
गीता में लिखा
जीवन का मर्म है
जिसका उद्देश्य
निरंतर कर्म है।
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति,,,यशवंत जी,,,,बधाई,,,
RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
विनम्रता हमेशा झुकना ही सिखलाती है...बहुत सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteघास
ReplyDeleteसिर्फ घास ही नहीं
गीता में लिखा
जीवन का मर्म है
जिसका उद्देश्य
निरंतर कर्म है।
आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है ....
घास से गीता में लिखा
जीवन का मर्म दिए सिखा .... :))
हो उठती है
ReplyDeleteपुनः जीवंत
महलों के चमकते
फर्श के किनारों पर
मौका पाते ही
घास
सिर्फ घास ही नहीं
गीता में लिखा
जीवन का मर्म है
जिसका उद्देश्य
निरंतर कर्म है।
जीवन की सुन्दर व्याख्या अनोखा प्रतिक सुन्दर सुन्दर अति सुन्दर
बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteघास के कर्म को, घास के मर्म को
ReplyDeleteकभी इस तरह से नहीं देखा..
ना कभी इस बारे में सोचा था..
आपकी नजर से देखा तो बहुत कुछ जाना की छोटी से छोटी जीज़ भी बहुत महत्वपूर्ण होती है...
बधाई आपको, आपकी दूरदृष्टि को ,,
और आपके मॉम ,डैड को भी..
:-) :-) :-)
सहज शब्दों में गहन अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteहो उठती है
ReplyDeleteपुनः जीवंत
महलों के चमकते
फर्श के किनारों पर
मौका पाते ही
सुंदर बिम्ब ....बेहतरीन रचना
बहुत सुन्दर अनुभूति, ' घास '
ReplyDeleteसिर्फ घास ही नहीं
जीवन का मर्म है
जिसका उद्देश्य
निरंतर कर्म है।
नए बिम्ब, नयापन बेहद पसंद आया....
यशवंत बहुत सुन्दर रचना, बेहतरीन
ReplyDeleteघास
ReplyDeleteआस है
विश्वास है
दर्शन है
उपहास -परिहास है
....बहुत गहन अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर..
घास सच ही जीवन दर्शन है ..... बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही.... सुंदर अभिव्यक्ति !:)
ReplyDeleteखुबसूरत प्रस्तुति.....!!
ReplyDeleteblogjagat me nya hoon margdarshan kare bhai ji
ReplyDeleteraj
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
घास के सहारे आपने बड़ी बात कही है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 26/09/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteघास
ReplyDeleteसिर्फ घास ही नहीं
गीता में लिखा
जीवन का मर्म है
जिसका उद्देश्य
निरंतर कर्म है।
bahut sundarata se kahii man ki baat ...!!
shubhkamnayen .
घास के माध्यम से सुंदर जीवन दर्शन.
ReplyDeleteदोस्त गहरा दर्शन लिए है "घास "इसीलिए मुहावरों में भी जीवित है घास ,"घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या ".घास खोदना भी मुहावरा है भाई साहब -हाँ मैं तो यहाँ बस घास खोद रहा हूँ जैसे घास खोदना कोई कर्म ही न हो अप कर्म हो .भले यू पी ए २ भी यही काम कर रही हो .पर काम करते दिखती तो है .
ReplyDeleteघास पर्यावरण की सेहत हरियाली ,कुदरत के हरे बिछौने ,पृथ्वी के हरे बिछौने (वेजिटेशन कवर ) ,पेड़ पौधों हरियाली ,जंगलात का भी प्रतीक है व्यापक अर्थों में .
हाड ज़रे ज्यों लाकरी ,केस ज़रें ज्यों घास ,
सग जग जरता देखि के ,भया कबीर उदास .
शब्द कृपणता ठीक नहीं ब्लॉग जगत में को आपने स्थान दिया हलचल में शुक्रिया तहे दिल से .
वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ४८ १८८ यू एस ए
सहा शब्दों के माध्यम से बेहतरीन प्रस्तुति |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-
♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥