न दो हाथ, न दो पैर, मगर जिंदगी जीते ही हैं
सर पे न हाथ,न साथ में साया किसी का
साँसों की मजबूरी, कि दर बदर घिसटते ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं
दिन मे तोड़ते हैं पत्थर,रात सड़क पे सोते ही हैं
खाते अमीरों की जूठन ,कीचड़ को पीते ही हैं
आसमां है जिनकी छत,तन पर चिथड़े ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं
गुजरती रेलों,उड़ते जहाजों को देख कर
सजी धजी मेमों,सूटेड साहबों को देख कर
ये 'ज़ाहिल' भी साहिल के सपने देखते ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं ।
©यशवन्त माथुर©
सर पे न हाथ,न साथ में साया किसी का
साँसों की मजबूरी, कि दर बदर घिसटते ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं
दिन मे तोड़ते हैं पत्थर,रात सड़क पे सोते ही हैं
खाते अमीरों की जूठन ,कीचड़ को पीते ही हैं
आसमां है जिनकी छत,तन पर चिथड़े ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं
गुजरती रेलों,उड़ते जहाजों को देख कर
सजी धजी मेमों,सूटेड साहबों को देख कर
ये 'ज़ाहिल' भी साहिल के सपने देखते ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं ।
©यशवन्त माथुर©
संवेदनशील रचना..
ReplyDeletetest
ReplyDeleteन दो हाथ, न दो पैर, मगर जिंदगी जीते ही हैं
ReplyDeleteसर पे न हाथ,न साथ में साया किसी का
साँसों की मजबूरी, कि दर बदर घिसटते ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं
गुजरती रेलों,उड़ते जहाजों को देख कर
ReplyDeleteसजी धजी मेमों,सूटेड साहबों को देख कर
ये 'ज़ाहिल' भी साहिल के सपने देखते ही हैं
मेरे चारों ओर, कुछ लोग ऐसे भी हैं ।
very nice HEART TOUCHING
कई लोग हैं ऐसे ...हम सबके चारों ओर...
ReplyDeleteअनु
सुन्दर रचना
ReplyDeleteऐसे लोग यत्र तत्र सर्वत्र मिल ही जाते है|
ReplyDeleteGyan Darpan
बहुत उम्दा रचना |
ReplyDeleteतुम्हारे ब्लॉग पर ये रुक जाना नहीं तू कहीं हार के ,का धीमे धीमे म्यूजिक बहुत सुकून देता है
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा है यशवंत बहुत दिल दुखता है जब ऐसे लोगों को देखती हूँ पर यहाँ सब को अपने अपने हिस्से का दुःख झेलना पड़ता है
ReplyDelete