आए कोई न आए इस दर पर
फर्क नहीं पड़ता
नकाब मे चेहरा छुपा कर
कुछ कह जाए
फर्क नहीं पड़ता
शब्दों की इन राहों पर
शब्दों के तीखे मोड़ों पर
शब्दों के भीड़ भरे मेलों में
मिल जाए कोई या बिछड़ जाए
फर्क नहीं पड़ता
न आने से पहले कहा था कुछ
न जाने से पहले कुछ कहना है
इस लाईलाज नशे मे डूब कर
खुश होना कभी बिखरना है
यह महफिल नहीं रंगों की
न रंग बिरंगे पर्दे हैं
कभी गरम तो सर्द हवा संग
एक मन और उसकी बाते हैं
हम तो चलते चलते हैं
यूं ही कुछ कुछ कहते हैं
कुछ मे कभी कुछ न मिले तो
अर्थ अनर्थ को
फर्क नहीं पड़ता।
©यशवन्त माथुर©
फर्क नहीं पड़ता
नकाब मे चेहरा छुपा कर
कुछ कह जाए
फर्क नहीं पड़ता
शब्दों की इन राहों पर
शब्दों के तीखे मोड़ों पर
शब्दों के भीड़ भरे मेलों में
मिल जाए कोई या बिछड़ जाए
फर्क नहीं पड़ता
न आने से पहले कहा था कुछ
न जाने से पहले कुछ कहना है
इस लाईलाज नशे मे डूब कर
खुश होना कभी बिखरना है
यह महफिल नहीं रंगों की
न रंग बिरंगे पर्दे हैं
कभी गरम तो सर्द हवा संग
एक मन और उसकी बाते हैं
हम तो चलते चलते हैं
यूं ही कुछ कुछ कहते हैं
कुछ मे कभी कुछ न मिले तो
अर्थ अनर्थ को
फर्क नहीं पड़ता।
©यशवन्त माथुर©
ई मेल पर प्राप्त-
ReplyDeletesuperb. Mathurji.
Madan Mohan saxena
ई मेल पर प्राप्त-
ReplyDeleteindira mukhopadhyay
बहुत खूब यशवंतजी। पर आप कविता लिखते रहिये हमें फर्क पड़ता है।
फर्क तो पड़ गया
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 12/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
धन्यवाद दीदी
ReplyDeleteकाश ऐसा ही हो कोई कुछ भी कहे या करे हमें फर्क ना पड़े...
ReplyDelete:-)
धन्यवाद रीना जी
ReplyDeleteई मेल से प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteविभा रानी श्रीवास्तव
अरे ऐसे कैसे .......... आपने कह दिया हमने मान लिया ......... ??
मुझे तो बहुत फर्क पड़ता है !
बहुत बहुत धन्यवाद आंटी
ReplyDeleteफ़र्क पड़ता है यशवंत ....किसी की तकलीफ़ पर प्यार के दो बोलों के मरहमसे फर्क पड़ता है .....और भी ऐसे ग़म हैं ज़माने में ......जिन्हें शब्दों की बैसाखी से फ़र्क पड़ता है ...आज़मा के देखो
ReplyDeleteज़रूर आंटी!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद !
फर्क नहीं पड़ता तो आज ये लिखा भी नहीं जाता .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसच में फर्क नहीं पड़ता आंटी। लिखने की बात तो यह है आंटी कि 6 साल की उम्र से आदत सी पड़ गयी है कुछ न कुछ लिखने की :)
Deleteहाँ यशवंत ..ये तो दिल को बहलाने वाली बात है...फर्क तो पड़ता है...काश के न पड़ता....
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
धन्यवाद दीदी।
ReplyDeleteजेवण में बातों का फर्क न पड़े तो जीवन आसान हो जायगा ... पर शायद ऐसा होता नहीं ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर!
ReplyDeleteचलना बहुत जरूरी है यशवंत भाई, यभी तो पत्थर और फूल का बोध हो. बहुत सुन्दर लगी आपकी कविता.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद निहार जी।
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