भावनाओं के धधकते
ज्वालामुखी से निकलता
एहसासों का धुआँ
सिर्फ एक पूर्वानुमान है।
उसके भीतर दबे
शब्दों का लावा
अपनी जद में
समेटेगा
किन विधाओं को ...
कौन जानता है ?
©यशवन्त माथुर©
ज्वालामुखी से निकलता
एहसासों का धुआँ
सिर्फ एक पूर्वानुमान है।
उसके भीतर दबे
शब्दों का लावा
अपनी जद में
समेटेगा
किन विधाओं को ...
कौन जानता है ?
©यशवन्त माथुर©
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 12/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!!
ReplyDeleteकौन जाने भावी अपने गर्भ में क्या छुपाये है..कोई अनमोल हीरा भी हो सकता है..सुंदर रचना !
ReplyDeleteआपके शब्दों का लावा हर विधा को अपनी जद में समेटे यही दुआ है..
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteBehad Umda....
ReplyDeleteलावा धधकता है .बहकर निकलता है
ReplyDeleteमन जब पिघलता है आंसू बन बहता है
सुन्दर रचना
ReplyDeleteधधकता लावा बाहर आएगा ही ....
ReplyDeletebahut achchhi abhivyakti:
ReplyDeleteNew post : दो शहीद