सपनों की रंगीन
चित्ताकर्षक
मनमोहक
और अपनी मनचाही
दुनिया में घूमते हुए
मैं अक्सर सोचता हूँ
यह जीवन भी
होता अगर
ऐसे ही किसी
सुखांत सपने की तरह
तब शायद
एक बार खिल उठने के बाद
कोई फूल
न कभी मुरझाता
और न ही कर पाता
नव जीवन का एहसास !
©यशवन्त माथुर©
चित्ताकर्षक
मनमोहक
और अपनी मनचाही
दुनिया में घूमते हुए
मैं अक्सर सोचता हूँ
यह जीवन भी
होता अगर
ऐसे ही किसी
सुखांत सपने की तरह
तब शायद
एक बार खिल उठने के बाद
कोई फूल
न कभी मुरझाता
और न ही कर पाता
नव जीवन का एहसास !
©यशवन्त माथुर©
काश !ऐसा हो पाता !!
ReplyDeleteआपको लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएँ .... :))
लेकिन सपने तो सपने ही होते हैं
ReplyDeleteबहुत खूब ... नवजीवन का एहसास खिलने के बाद ही होता है ... इसलिए चक्र जरूरी है ...
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteप्रभावी कथ्य |
आभार ||
khubsurat...
ReplyDeleteहै तो स्वप्नवत ही बस आँख ही नही खुली है अभी तक
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।। मंगल मंगल मकरसंक्रांति ।।
ReplyDeletebahut hi badhia likha hain bhai
ReplyDeletecheck my blog
http://drivingwithpen.blogspot.in/
खूबसूरत यशवंत
ReplyDeleteजीवन एक सपना ही तो है, काश सभी के लिए सुखांत होता...लोहिड़ी व मकर संक्रांति पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 16/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति के अवसर पर
उत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!
मानव-जीवन कर्म के लिये है, जिसकी देवता (जिनका जीवन केवल भोग के लिये है)भी कामना करते हैं.
ReplyDeleteसुन्दर भाव !!!
ReplyDeleteमेरी टिप्पणी स्पैम में देखिये ।
ReplyDeleteआंटी
Deleteआपकी टिपणी स्पैम मे भी देखि और मेल मे भी...पर मुझे इस पोस्ट पर पहले आप्क कोई टिप्पणी नहीं मिली :(