मनोबल
एक ऐसी दीवार होता है
जिसकी नींव
कभी कभी संशय में रहती है
कभी तन कर
अपनी जगह
बनाए रखती है दीवार को
और कभी
एक ठोकर में ही
ढह जाने देती है
मेरा मन
मेरा मनोबल
स्थिर है
चिकने घड़े की तरह
बे परवाह है
फिर भी
लातों की
कोशिशें जारी हैं
विध्वंस को
अंजाम देने की।
©यशवन्त माथुर©
एक ऐसी दीवार होता है
जिसकी नींव
कभी कभी संशय में रहती है
कभी तन कर
अपनी जगह
बनाए रखती है दीवार को
और कभी
एक ठोकर में ही
ढह जाने देती है
मेरा मन
मेरा मनोबल
स्थिर है
चिकने घड़े की तरह
बे परवाह है
फिर भी
लातों की
कोशिशें जारी हैं
विध्वंस को
अंजाम देने की।
©यशवन्त माथुर©
कोशिशें जारी हैं
ReplyDeleteविध्वंस को
अंजाम देने की।
मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है .....
होता वही ,जो मंज़ूरे ख़ुदा होता है .....
सुंदर भावअभिव्यक्ति,,,यशवंत जी,,,
ReplyDeleterecent post : बस्तर-बाला,,,
सुन्दर अभिव्यक्ति ... शुभकामनायें
ReplyDeletekosishe hi to kaamyaab hoti hai.... behtreen post...
ReplyDeleteशायद आप इस पोस्ट को नहीं समझ पाईं सुषमा जी :)
Deleteहमारा मन ही मनोबल को अपनी जगह स्थिर रख सकता है ..
ReplyDeleteबस मन को थामे रखिये ..
दुनिया तो हमें अस्थिर करने की कोशिशें करती रहती है ..आदत जो है ..
kalamdaan
और इसे कभी टूटने भी न देना ...यही तो हमारा संबल है...:)
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