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27 January 2013

वो धोखा दे रहा था या मैं धोखा खा रहा था ?

इसी चौराहे पर
कल वो बेचता हुआ झंडे 
एक का  एक ...एक का एक
चिल्ला रहा था
भारत माता की
जयकार लगा रहा था

इसी चौराहे पर आज
साफ करते हुए कप प्लेट 
उन्हीं हाथों से अपनी
किस्मत चमका रहा था

ये उसका बचपन है
या ढलती हुई जवानी
दो जून की रोटी
और किस्मत की कहानी

इस चौराहे से गुजरती
रोज़ तरक्की देखते हुए  
वो धोखा दे रहा था
या मैं धोखा खा रहा था ?
 ©यशवन्त माथुर©

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    वन्देमातरम् !
    गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!

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  2. न जाने कितनी जिंदगियों का सच है यह ....पर उनके लिए जीवन है यह .......

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  3. धोखा देना और धोखा खान नियति बन गई .-उम्दा प्रस्तुति
    गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!
    New postमेरे विचार मेरी अनुभूति: तुम ही हो दामिनी।

    ReplyDelete
  4. इस चौराहे से गुजरती
    रोज़ तरक्की देखते हुए
    वो धोखा दे रहा था
    या मैं धोखा खा रहा था

    इस प्रजातंत्र में
    सब
    धोखा खा रहे हैं ........

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  5. इसी चौराहे पर आज
    साफ करते हुए कप प्लेट
    उन्हीं हाथों से अपनी
    किस्मत चमका रहा था
    बहुत सुन्दर ...

    ReplyDelete
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