इसी चौराहे पर
कल वो बेचता हुआ झंडे
एक का एक ...एक का एक
चिल्ला रहा था
भारत माता की
जयकार लगा रहा था
इसी चौराहे पर आज
साफ करते हुए कप प्लेट
उन्हीं हाथों से अपनी
किस्मत चमका रहा था
ये उसका बचपन है
या ढलती हुई जवानी
दो जून की रोटी
और किस्मत की कहानी
इस चौराहे से गुजरती
रोज़ तरक्की देखते हुए
वो धोखा दे रहा था
या मैं धोखा खा रहा था ?
©यशवन्त माथुर©
कल वो बेचता हुआ झंडे
एक का एक ...एक का एक
चिल्ला रहा था
भारत माता की
जयकार लगा रहा था
इसी चौराहे पर आज
साफ करते हुए कप प्लेट
उन्हीं हाथों से अपनी
किस्मत चमका रहा था
ये उसका बचपन है
या ढलती हुई जवानी
दो जून की रोटी
और किस्मत की कहानी
इस चौराहे से गुजरती
रोज़ तरक्की देखते हुए
वो धोखा दे रहा था
या मैं धोखा खा रहा था ?
©यशवन्त माथुर©
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteवन्देमातरम् !
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!
न जाने कितनी जिंदगियों का सच है यह ....पर उनके लिए जीवन है यह .......
ReplyDeletebhaut hi acchi......
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ReplyDeleteधोखा देना और धोखा खान नियति बन गई .-उम्दा प्रस्तुति
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!
New postमेरे विचार मेरी अनुभूति: तुम ही हो दामिनी।
इस चौराहे से गुजरती
ReplyDeleteरोज़ तरक्की देखते हुए
वो धोखा दे रहा था
या मैं धोखा खा रहा था
इस प्रजातंत्र में
सब
धोखा खा रहे हैं ........
इसी चौराहे पर आज
ReplyDeleteसाफ करते हुए कप प्लेट
उन्हीं हाथों से अपनी
किस्मत चमका रहा था
बहुत सुन्दर ...