बड़े अजीब से
इन रास्तों पर चल कर
कभी गिर कर
कभी संभल कर
ज़रूरी नहीं कि कोई
इनसां ही
बने हमसफर ...
किनारे गिरे पड़े
टेढ़े मेढ़े पत्थर
पैरों की
खाते हुए ठोकर
सुना सुना कर
खटर पटर
संगीत की तान....
कर देते हैं पूरी
इस सफर की दास्तान।
©यशवन्त माथुर©
इन रास्तों पर चल कर
कभी गिर कर
कभी संभल कर
ज़रूरी नहीं कि कोई
इनसां ही
बने हमसफर ...
किनारे गिरे पड़े
टेढ़े मेढ़े पत्थर
पैरों की
खाते हुए ठोकर
सुना सुना कर
खटर पटर
संगीत की तान....
कर देते हैं पूरी
इस सफर की दास्तान।
©यशवन्त माथुर©
सही बात है, ज़िन्दगी का सफ़र जारी रहता है, किसी के लिए भी नहीं रुकता... गहन भाव... शुभकामनायें
ReplyDeleteसंगीत की तान....
ReplyDeleteकर देते हैं पूरी
इस सफर की दास्तान।
सच्चाई कितने सुन्दर ढ़ंग से ...... !!
शुभकामनायें :))
अच्छा पत्थरों में तो नहीं लेकिन हाँ चिड़ियों का कलरव...पानी का बहना ...चक्की की आवाज़....रहट की आवाज़...इन में तो संगीत सुना था
ReplyDeleteपत्थर हमसफ़र????
ReplyDeleteहाँ पत्थर दिल इंसानों से तो बेहतर ही साबित होंगे....
अच्छी रचना...
सस्नेह
अनु
ज़रूरी नहीं कि कोई
ReplyDeleteइनसां ही
बने हमसफर ...
....बहुत सच कहा है...सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की #
ReplyDeleteKabhi kabhi insanoo se zada aachi sangat MUSIC ki hoti h... beautiful one!!
ReplyDeleteवाह क्या बात है
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती रचना !
bahut hi badhiya Yashwant!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना !शुभकामनाएं यशवन्त
ReplyDeleteअकेले कोई सफर नहीं कटता
ReplyDeleteहमसफ़र न सही ...पत्थर ही सही
बहुत खूब
हमसफ़र न हो तो पत्थर ही सही ....बेहतरीन भाव,,,
ReplyDeleterecent post: वह सुनयना थी,
जिन्दगी का सफर अनवरत चलता ही रहता चाहे जिन्दगी में सुख आये या दुःख।बहुत ही अच्छी रचना।
ReplyDeleteराजेन्द्र ब्लॉग