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न ही कुछ लिखा जाएगा
न लोग इकट्ठे होंगे
न लगेंगे मुर्दाबादी नारे
क्योंकि जिंदाबादों की यह बस्ती
आबाद है
अवसरवादी मुखौटों से!
©यशवन्त माथुर©
(इलाहाबाद रेलवे स्टेशन की घटना पर मेरी यह प्रतिक्रिया संजोग अंकल के फेसबुक स्टेटस पर टिप्पणी में है।)
सार्थक चिंतन के साथ एक सशक्त प्रस्तुति ! शुभकामनाएं यशवंत जी !
ReplyDeleteबिलकुल उचित प्रतिक्रिया है आपकी!
ReplyDelete:(
ReplyDeleteसटीक ...
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा नहीं जलेंगी मोमबतियाँ
ReplyDeleteक्योंकि जिंदाबादों की यह बस्ती
ReplyDeleteआबाद है
अवसरवादी मुखौटों से!
खूब कही.... सटीक
~उस शोर में भी हम सब शामिल थे...
ReplyDeleteइस खामोशी में भी हम सब शामिल हैं....~
'कुंभ मेले' में भी दुर्घटना घटी... और ये कोई पहली बार नहीं हुआ ! दुख तो यही है... कि ये सब दुर्घटनाएँ यहाँ-वहाँ घटती रहतीं हैं मगर इसके लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाया जाता, अच्छा इंतज़ाम नहीं किया जाता जिससे अगली बार ऐसा कुछ दुखद ना हो... :(
~God Bless!!!
sahi kaha tumne yashwant...
ReplyDeleteकडुवा सच कहा है ...
ReplyDeleteसही कहा नहीं जलेंगी मोमबतियाँ
ReplyDeleteयह वास्तविकता हैLatest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
ReplyDeleteYash,
ReplyDeleteSad, but true.
D
sarthak post ..
ReplyDeletesach ,par n jane kab nijat milegi in awasarwadi mukhoton se,
ReplyDeletekatu yatharth,..
ReplyDeletekatu yatharth ka chitran,.. badhai
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति पढ़कर ...प्रेमचंदजी की एक कहाँ याद आ गयी .."ब्रह्म का स्वांग ".....
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