निर्वात के
इस भ्रम में
परावर्तित होती
मन की तस्वीर
घुप्प अंधेरे में
जब दिखाती है
खुद की परछाई
तो होता है
एहसास
निर्जन में
जन के होने का ।
©यशवन्त माथुर©
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बहुत खूब !
ReplyDeleteशब्द आइना लगे !!
शुभकामनायें !
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteसच कहा है ... साया ही हमसफ़र होता है अक्सर ..
ReplyDeleteअक्सर साया ही हमसफ़र होता है ...
ReplyDeleteतन्हाइयों में भी अपने साथ के होने का मधुर एहसास ,सुहोली के सभी रंग मुबारक हों सुन्दर भीगी सी कविता न्दर भाव यशवंतजी ,बधाई |
ReplyDeleteतन्हाइयों में भी अपने साथ के होने का मधुर एहसास , सुन्दर भीगी सी कविता यशवंतजी ,बधाई |
ReplyDeleteघुप्प अँधेरे में भी जो साथ दे वही तो अपना आप है..सुंदर रचना !
ReplyDeleteनिर्वात के
ReplyDeleteइस भ्रम में
परावर्तित होती
मन की तस्वीर
घुप्प अंधेरे में
जब दिखाती है
खुद की परछाई
तो होता है
एहसास
निर्जन में
जन के होने का ।
खुबसूरत क्षणिका गहन भाव समेटे
बहुत खूब..
ReplyDeleteसुंदर भावपूरण रचना
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteगहरे भाव लिये ...
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