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12 March 2013

क्षणिका

निर्वात के
इस भ्रम में
परावर्तित होती
मन की तस्वीर
घुप्प अंधेरे में
जब दिखाती है
खुद की परछाई
तो होता है
एहसास
निर्जन में
जन के होने का ।  
©यशवन्त माथुर©

12 comments:

  1. बहुत खूब !
    शब्द आइना लगे !!
    शुभकामनायें !

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  2. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना.

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  3. सच कहा है ... साया ही हमसफ़र होता है अक्सर ..

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  4. अक्सर साया ही हमसफ़र होता है ...

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  5. तन्हाइयों में भी अपने साथ के होने का मधुर एहसास ,सुहोली के सभी रंग मुबारक हों सुन्दर भीगी सी कविता न्दर भाव यशवंतजी ,बधाई |

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  6. तन्हाइयों में भी अपने साथ के होने का मधुर एहसास , सुन्दर भीगी सी कविता यशवंतजी ,बधाई |

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  7. घुप्प अँधेरे में भी जो साथ दे वही तो अपना आप है..सुंदर रचना !

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  8. निर्वात के
    इस भ्रम में
    परावर्तित होती
    मन की तस्वीर
    घुप्प अंधेरे में
    जब दिखाती है
    खुद की परछाई
    तो होता है
    एहसास
    निर्जन में
    जन के होने का ।

    खुबसूरत क्षणिका गहन भाव समेटे

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  9. सुंदर भावपूरण रचना

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  10. गहरे भाव लिये ...

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