आसमान को छूती
महंगाई के इस दौर में
सिर्फ इंसान ही सस्ता है
जो ज़मीन पर था
और अब भी
ज़मीन पर ही खड़ा है
वह इंसान
कभी आदमी के रूप में
कभी औरत के रूप में
आसमान की छत
और ज़मीन के फैले आँगन में
कभी लेटता है
कभी बैठता है
उस पर होने लगा है
असर
पड़ोसी आवारा जानवरों की
संगत का
जो दुनियावी रिश्तों
और सोच से मुक्त हो कर
भोग के समुद्र में लगाते हैं
कितनी ही डुबकियाँ
या लगाते हैं लोट
भूख की खुरदरी
और चुभती रेत पर
यह दौर है
बदलाव का
बदलती तकनीक का
जिसके सामने की सड़क
ले जाती है
उसी पिछले चौराहे पर
जहां हर रोज़
मिट्टी से भी कम दाम पर
आदम और हव्वा
बिकते हैं
तुल कर
महंगाई के तराजू पर ।
~यशवन्त माथुर©
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Neha Sharma
ReplyDeletenice one
NAVIN C. CHATURVEDI
ReplyDeleteअच्छी कविता है
Ramakant Singh
ReplyDeleteयह दौर है
बदलाव का
बदलती तकनीक का
जिसके सामने की सड़क
ले जाती है
उसी पिछले चौराहे पर
जहां हर रोज़
मिट्टी से भी कम दाम पर
आदम और हव्वा
बिकते हैं
तुल कर
महंगाई के तराजू पर ।
एक कड़वी सच्चाई बहुत खूब
sangeeta swarup
ReplyDeleteसटीक और गहन रचना
vibha rani Shrivastava
ReplyDeleteबहुत गहन रचना .......
सबसे सस्ताच तो आज इंसान ही है .........
God Bless U .
Saras Darbari
ReplyDeleteआक्रोश और बेचारगी का वह स्वर जो कितनी ही बार विचारों में घुमड़ता है ..फिर परिस्तिथियों के सामने विवश हो जाता है ...गहन !!!
indu singh
ReplyDeleteयथार्थ !!!
Shalini Rastogi
ReplyDeleteआज के समय की विकृत व वीभत्स सच्चाई ...
Bhavana Lalwani
ReplyDeleteyashwant ji .. this tym u nailed it .. bahut hi umda likha hai .. aur bikul sateek shabdon mein aam adami ke vichar likh daale hain
•
Anita Nihalani
ReplyDeleteआज के हालातों की असलियत को बयां करती मार्मिक पोस्ट
Mohan Srivastava poet
ReplyDeletebahut sundar prastuti ,meri hardik shubh kamanaye
Digamber Naswa
ReplyDeleteआज का वातावरण शब्दों में उतार दिया ... कमाल है यशवंत जी ..
Nihar Ranjan
ReplyDeleteबहुत गहन रचना यशवंत भाई. बधाई स्वीकारें.
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
--
शस्य श्यामला धरा बनाओ।
भूमि में पौधे उपजाओ!
अपनी प्यारी धरा बचाओ!
--
पृथ्वी दिवस की बधाई हो...!
Maheshwari Kaneri
ReplyDeleteमहंगाई के इस तराजू में इंसान तिल तिल कर तुल रहा ..सुन्दर भाव..शुभकामनायें!
Snigdha Ghosh Roy
ReplyDeletethe sarcasm or vyangya is quite well ensconced in the poem
Nisha Mittal
ReplyDeleteसुन्दर रचना एक सार्थक सन्देश के साथ
Nivedita Srivastava
ReplyDeleteimpressive thought .......
कालीपद प्रसाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
P.N. Subramanian
ReplyDelete. "आज" का सही चित्रण.बेहद सुंदर रचना.
aruna kudesia
ReplyDeleteसुन्दर और गहन रचना ........
sadhana vaid
ReplyDeleteतल्ख़ सचाई को बेबाकी से बयान करती एक बेहतरीन प्रस्तुति ! बधाई एवँ शुभकामनायें !
Deepak Kalathiya
ReplyDeleteसुन्दर रचना एक सार्थक सन्देश के साथ
लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteIts v true, bahut khub msg.
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