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07 April 2013
यशवन्त....
यशवन्त करे न चाकरी,यशवन्त करे न काम।
पाठक सारे भाग चलें,पढ़ कर इसी का नाम। ।
पढ़ कर इसी का नाम, हर सुबह से शाम।
बे सिर पैर बक बक करे,बुद्धि इसकी जाम। ।
बुद्धि इसकी जाम,बुद्धिजीवी धोखा खाता ।
चश्मुद्दीन उपनाम,यह तो मन की कहता जाता। ।
~यशवन्त माथुर©
बहुत ही साधारण लिखने वाला एक बहुत ही साधारण इंसान जिसने 7 वर्ष की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। वाणिज्य में स्नातक। अच्छा संगीत सुनने का शौकीन। ब्लॉगिंग में वर्ष 2010 से सक्रिय। एक अग्रणी शैक्षिक प्रकाशन में बतौर हिन्दी प्रूफ रीडर 3 वर्ष का कार्य अनुभव।
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बहुत सुन्दर यशवंत भाई. पाठक को भागने दीजिये. पर आप बिलकुल अपने मन की ही करिये. बहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप. शुभकामनायें.
ReplyDeleteअब क्या तारीफ़ करें आपकी
ReplyDeleteखुद को ही दे दिए सारे नाम
कुछ ना छोड़ा औरों के वास्ते
आपको क्या दें हम उपनाम
hahahhahaha...
ReplyDeletehansi ki baat alag par bahut achha likha hai.....
shubhkamnayen
:-)
ReplyDeleteself portrait!!!!
enjoyed!!!
anu
लीजिए पाठक आ गया,बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteवाह: बहु बढ़िया.यशवंत..
ReplyDeleteयशवन्त करे न चाकरी,यशवन्त करे न काम।
ReplyDeleteपाठक सारे भाग चलें,पढ़ कर इसी का नाम। ..
लो जी हम तो भागने की बजाए आ गए ...
अच्छी है यशवंत जी ...
हाहा बेहतरीन! वैसे किसकी मजाल है जो आपके इन अनूठे रचनाओं को पढ़े बिना भाग जाय!!
ReplyDeleteपाठक तो भागे नहीं ,चर्चा मंच पर ले आए
ReplyDeleteआपकी रोचक रचना की ढेरों शुभकामनाएँ
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (08 -04-2013) के चर्चा मंच 1208 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है | सूचनार्थ
भागकर कितनी दूर जायेंगे आखिर ..... दुनिया जो गोल है फिर कहाँ भागना .....
ReplyDeleteबहुत खूब...
भागकर कितनी दूर जायेंगे आखिर ..... दुनिया जो गोल है फिर कहाँ भागना .....
ReplyDeleteबहुत खूब...
bahut pasand aayi kabhi kabhi apne baare me bhi jarur likhna chahiye
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यशवंत भाई
भागकर कितनी दूर जायेंगे...बेहतरीन प्रस्तुति !!
ReplyDeleteपधारें "आँसुओं के मोती"