मजबूरी है
मेरे लिये
बने रहना
मन का गुलाम
यूं तो हैं कई काम
जिंदगी के इस मेले में
कुछ स्याह कुछ सफ़ेद पल
कभी मनाते हैं उत्सव
और कभी छेड़ते हैं
निराशा की बेसुरी तान
इनमें से ही कुछ
देख सुन और समझ कर
मन बोलता रहता है
चाहे अनचाहे
सुनाता रहता है
कुछ बातें .....
जो उतरती रहती हैं
वर्तमान, भूत
और भविष्य की कलम से
कागज़ के बेहोश पन्नों पर
मैं चाहता भी नहीं हूँ
आज़ाद होना
मन की इस गुलामी से
क्योंकि
मन की बेड़ियों में जकड़कर भी
उड़ता रहता हूँ
शून्य और अनंत की
ऊंचाईयों पर।
~यशवन्त माथुर©
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इस रचना की कल्पना बहुत ही रोचक है .....गुलाम हूँ ...पर उड़ता हूँ शून्य में ...अनंत में ...वाह
ReplyDeleteकल्पना की सुन्दर उड़ान....
ReplyDeleteमैं चाहता भी नहीं हूँ
ReplyDeleteआज़ाद होना
मन की इस गुलामी से
क्योंकि
मन की बेड़ियों में जकड़कर भी
उड़ता रहता हूँ
शून्य और अनंत की
ऊंचाईयों पर।
ये निर्विकार भाव भा गया मन को बेहतरीन और बेबाक कथन जिसमे मौलिकता का रंग
खूबशूरत भावनाओं का कल्पना के आकाश में स्वछंद विचरण ,बहुत खूब
ReplyDeletebhut hi gaheri bat khi hai aapne
ReplyDeletebhot umda rachna waaaaaaaaaah
bhot khub
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .मन को छू गयी .आभार . कायरता की ओर बढ़ रहा आदमी ..
ReplyDeletesach kaha man ke adheenta se dur rehna bhata nhi hai....
ReplyDeleteachha likha hai
shubhkamnayen
गुलामी का उडान शून्य से अनंत तक......... बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteगुलामी का उडान शून्य से अनंत तक......... बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteगुलामी का उडान शून्य से अनंत तक......... बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteमन की बेड़ियों में जकड़कर भी
ReplyDeleteउड़ता रहता हूँ
शून्य और अनंत की
ऊंचाईयों पर।
....बहुत सुन्दर अहसास...
बढ़िया रचना है दोस्त ..अच्छी लगी ..
ReplyDeleteबढ़िया रचना है दोस्त ..अच्छी लगी ..
ReplyDeleteMan ka Gulam = Marzi ka Malik!
ReplyDeleteGod Bless!
D
--
Thirteen Expressions of Love!!!
"सुनाता रहता है
ReplyDeleteकुछ बातें
जो उतरती रहती हैं
वर्तमान में भूत और भविष्य में "
बहुत सुन्दर उड़ान मन की
आशा
सुंदर अनुभूतियाँ...........
ReplyDeleteसुन्दर भावनाओं की कल्पना सार्थक है.
ReplyDeleteजो मन कहे उसे करना चाहिए ... कम से कम दिल साफ़ रहता है ...
ReplyDeleteजो अनंत में उड़ना जानता हो वह और कुछ भले ही हो गुलाम नहीं हो सकता..
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