(चित्र साभार-अविनाश कुमार चंचल जी ) |
भागती है
अपनी पटरी पर
सरपट ये जिंदगी
देखती है
और सहेजती है
दौड़ लगाती
धरती और पेड़ों को
ऊंचे पुलों को
बहती-सूखी नदियों को
चलती बसों-ट्रकों
आते जाते लोगों
और सुनसान सड़कों को
जो दिन मे गुलज़ार रहती हैं
अमीरों को मस्ती में
और कराहती हैं हर रात को
हरे ज़ख़्मों पर छिटके
नमक की टीस से ।
(2)
यादों की भीड़ से
ठसाठस भरी
यह जिंदगी की रेल
आने वाले मुकामों पर
थोड़ा ठहर कर
कभी खुद से बातें करती है
कभी औरों की बातें सुनती है
न जाने किस तरह
बुनते हुए चित्र
हर आने वाले पल का
और चलती रहती है
अपनी पटरी पर
सदा की तरह।
~यशवन्त माथुर©
(पत्रकार अविनाश कुमार चंचल जी के फेसबुक चित्र से प्रेरित)
सच जिंदगी भी रेल की पटरी की तरह चलती रहती चलती रहती है .... बढ़िया रचना !!
ReplyDeleteऔर चलती रहती है
ReplyDeleteअपनी पटरी पर
सदा की तरह। sahi bat har ghatna se pare rahkar .....
sarthak prastuti....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकल बिहार में कुचल गई कई जिंदगी
वैसे रोज कहीं ना कहीं लील जाती है
नेताओ को मौका दे जाती है गाल बजाने का मौका
रेल की पटरी पर भागती जिन्दगी... सुंदर बिम्ब !
ReplyDeleteचलती है ये रेल ओर यादें कम नहीं होती ... इस रेल में बढती जाती हैं यादें ... ओर भरता भी नहीं कम्पार्टमेंट ...
ReplyDeleteयादों की भीड़ से
ReplyDeleteठसाठस भरी
यह जिंदगी की रेल
जो सवार हैं यादें ज़िन्दगी की रेल पर, सफ़र कट ही जाएगा!
रेलगाड़ी का मानवीकरण कर जीवन के रंगों में रंगी रचना
ReplyDeleteयशवंत भाई .दिल को छो गयी कविताएं और सच में कविताएं नहीं है .. बहुत कुछ है ...
ReplyDeleteदिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com
मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com
सच है यह जिंदगी एक रेल ही तो है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर