बिखरी चट्टानों पर
लहरों का असर तारी है
चल रही हैं सांसें
और सफर जारी है
साँसे जिन पर
न मेरा वश है न किसी और का
मालिक ही लिखता है पता
पिछले और अगले ठौर का
उस मुकाम पे खुश हूँ
जिसे पाया है अब तलक
ज़मीं पे रह कर ही
छूना चाहता हूँ फ़लक
चलना है चल रहा हूँ
न जाने कौन सी खुमारी है
लहरों को रोकती चट्टानें
और सफर ज़री है।
~यशवन्त यश©
लहरों का असर तारी है
चल रही हैं सांसें
और सफर जारी है
साँसे जिन पर
न मेरा वश है न किसी और का
मालिक ही लिखता है पता
पिछले और अगले ठौर का
उस मुकाम पे खुश हूँ
जिसे पाया है अब तलक
ज़मीं पे रह कर ही
छूना चाहता हूँ फ़लक
चलना है चल रहा हूँ
न जाने कौन सी खुमारी है
लहरों को रोकती चट्टानें
और सफर ज़री है।
~यशवन्त यश©
बनी रहे ये खुमारी
ReplyDeleteसफर रहे इसी तरह जारी....
सुंदर भावयुक्त रचना...
chalte jana jeevan hai aur ruk jana ant nahi apitu agle safar ki taiyaari hai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1438” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
आपका सफर ऐसे ही जारी रहे... बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसफ़र यूँ ही अबाध जारी रहे. शुभकामनाएं!
ReplyDeleteजमीं पे रह कर ही
ReplyDeleteछूना चाहता हूँ फलक
बेहद खूबसूरत पंक्तियां.....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसफर जारी ही रहनी चाहिए..शुभकामनाएं
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