मैंने कब कहा
आसमान से
तारे तोड़ कर लाऊँगा
मैंने कब कहा मैं ही
चाँद और
मंगल पर जाऊंगा
मैंने कब कहा
अँधेरों में
रोशनी बन जाऊंगा
मैंने कब कहा
सोने पर
हीरे सा जड़ जाऊंगा
मैंने कब कहा
सीढ़ी लगा
गगन से मिल आऊँगा
मैंने कब कहा
सर्दियों में
रोज़ ही नहाऊँगा
मैंने कब कहा
अपना कहा यूं
लिख कर मिटाउंगा
मैंने कब कहा
हर पाठक के
दिमाग का दही बनाऊंगा
मैंने जो कहा
तब कहा
कहे से मुकर जाऊंगा
मैंने अब कहा
अपने कहे पर
कहकहे लगाऊँगा
मैंने कब कहा
मेरा लिखा
पढ़ना ज़रूरी है
हूटिंग के इस दौर में
'यशवंत'
अब भागना मजबूरी है।
~यशवन्त यश©
आसमान से
तारे तोड़ कर लाऊँगा
मैंने कब कहा मैं ही
चाँद और
मंगल पर जाऊंगा
मैंने कब कहा
अँधेरों में
रोशनी बन जाऊंगा
मैंने कब कहा
सोने पर
हीरे सा जड़ जाऊंगा
मैंने कब कहा
सीढ़ी लगा
गगन से मिल आऊँगा
मैंने कब कहा
सर्दियों में
रोज़ ही नहाऊँगा
मैंने कब कहा
अपना कहा यूं
लिख कर मिटाउंगा
मैंने कब कहा
हर पाठक के
दिमाग का दही बनाऊंगा
मैंने जो कहा
तब कहा
कहे से मुकर जाऊंगा
मैंने अब कहा
अपने कहे पर
कहकहे लगाऊँगा
मैंने कब कहा
मेरा लिखा
पढ़ना ज़रूरी है
हूटिंग के इस दौर में
'यशवंत'
अब भागना मजबूरी है।
~यशवन्त यश©
बहुत बढ़िया.....
ReplyDeleteInteresting...maine ab kaha
ReplyDeletevery nice .
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
जहाँ जाओगे हमे बता देना
ReplyDeleteहमे हमेशा जरूरत होगी <3
हार्दिक शुभकामनायें
हा हा सही कहा भागना जरूरी है हूटिंग में तो ...
ReplyDeletehaha sach me majedaar tarike se stya ko ubhara hai aapne ..nice .. :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर....!!
ReplyDeleteकुछ ना कह कर भी आपने बहुत कुछ कह दिया. बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteकहे हुए शब्दों का अर्थ हर कोई अपनी समझ के मुताबिक लगाता है..पर छिपी हुई मंशा जाने अनजाने हर दिल भांप जाता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
ReplyDelete
ReplyDeleteहाहा, बढ़िया है!