भीड़ भरे चौराहों पर चलें
या सुनसान राहों पर चलें
ऐ मेरे मन !
चलो कहीं चलें
जहां भागते समय का
कोई डर न हो
जहां हम हों और
किसी को खबर न हो
जहां मीलों फैली
धरती की छत पे
सितारे सजे हों
जहां चाँद और सूरज
साथ ही खड़े हों
मावस का हर दिन
जहाँ पूनम की रातें हों
पास में हो क्षितिज
और आसमान से बातें हों
तो किस बात की देर
आओ ख्वाबों के पार चलें
ऐ मेरे मन !
चलो कहीं चलें।
~यशवन्त यश©
या सुनसान राहों पर चलें
ऐ मेरे मन !
चलो कहीं चलें
जहां भागते समय का
कोई डर न हो
जहां हम हों और
किसी को खबर न हो
जहां मीलों फैली
धरती की छत पे
सितारे सजे हों
जहां चाँद और सूरज
साथ ही खड़े हों
मावस का हर दिन
जहाँ पूनम की रातें हों
पास में हो क्षितिज
और आसमान से बातें हों
तो किस बात की देर
आओ ख्वाबों के पार चलें
ऐ मेरे मन !
चलो कहीं चलें।
~यशवन्त यश©
ख़्वाबों के पार चले
ReplyDeleteचाँद के पास चलें
कहीं तो चलें...
बहुत सुन्दर रचना, बधाई.
बहुत सुन्दर ......
ReplyDeleteकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (05-01-2014) को "तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483" पर भी रहेगी...!!!
आपको नव वर्ष की ढेरो-ढेरो शुभकामनाएँ...!!
- मिश्रा राहुल
बहुत उम्दा प्रस्तुति !
ReplyDeleteऐसे कैसे होगा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
वाह ! बहुत ही सुंदर एवँ संतुलित रचना ! बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
ReplyDeleteमन तो ऐसे भी कहीं भी चला जाता है..जहां आप भी नहीं जा सकते..बहुत अच्छी कविता...
ReplyDeletebahut sundar rachna ...mn ke bs me sab kuchh hai ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुन्दर मनोभाव
ReplyDeletegajab ki chahat aasamaan se dur
ReplyDeleteमन को लेकर कहीं निकल जाना ही अच्छा है..क्योकि यही मन तो पागल है और यही मन इक बच्चा है..
ReplyDeleteआपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (3 से 9 जनवरी, 2014) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअहा ! सुन्दर!
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