चित्र साभार-http://home.howstuffworks.com/ |
यहाँ हर पल
हर ओर
दिखाई देते हैं
टंगे हुए पर्दे
जिनसे ढका हुआ
सबका मन
कभी
देखना ही नहीं चाहता
बाहर की
आज़ाद बेपरवाह
जिंदगी को।
ये पर्दे
कुछ झीने
पारदर्शी हैं
जिनसे
मिल जाती है झलक
भीतर की
और कुछ
जो बने हैं
सूत और
खददर के पर्दे
लेने नहीं देते
भीतर की थाह
आसानी से।
मन की खिड़की पर टंगे
ये पर्दे
कभी ज़रूरत लगते हैं
और कभी
सदियों पुरानी
धूल की पर्त को ढोते हुए
मजबूर से लगते हैं ......
फिर भी
देश, काल और वातावरण से परे
इनकी निर्विवाद
सार्वभौमिकता
कभी देखने नहीं देगी
भीतर का
कड़वा-मीठा सच।
~यशवन्त यश©
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletebadiya likha hai yashwant ji .. ye parde ab khud ko hi hataane padenge kyonki doosra koi toh inko hataa sakne mein saksham nahi
ReplyDeleteबहुत कुछ छुपा परदे के पीछे .....
ReplyDeleteमंगलवार 11/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteवाह ..पर्दों के प्रति भी इतनी सुंदर सोच । बहुत सुंदर
ReplyDeleteपर्दों में छुपी असलियत..कहाँ नजर आती है बंद परदों के बिच..सटीक भाव लिए बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteपर्दे के पीछे रहस्य ही रहस्य भरे हैं .....बहुत सुंदर..!
ReplyDeleteकितने मन और कितने ही पर्दे
ReplyDeleteबहुत खूब !
बढ़िया है सीधी सादी कविता
ReplyDeleteयह 'कविता' है ही नहीं सर :)
Deletegahre bhaav...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-02-2014) को "चलो एक काम से तो पीछा छूटा... " (चर्चा मंच-1519) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ये परदे ढांक लेते है घर को , तन को और मन को भी !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
अच्छी अभिव्यक्ति ...... शुभकामनाएं !
ReplyDeleteये कैसे पर्दे हैं जो न बाहर का देखने देते हैं न भीतर का..अब बाहर का तो मन नहीं देख सकता पर भीतर तो मन है फिर कौन नहीं देख सकता...
ReplyDeleteगहन अभिवयक्ति ...शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरता से आपने परदे के मध्यम से जीवन के बहुत बड़े सत्य को उजागर किया है ... अंतिम पंक्तियाँ विशेष रूप से मन को छू गईं .. बधाई यशवंत जी !
ReplyDeleteparde ka sach..khoob chitran kiya hai.
ReplyDeleteshubhkamnayen