गहराती रात के सूनेपन में
सरसराती आ रही है
एक आवाज़
कि कहीं से
झुरमुटों की ओट से
या किसी और छोर से
जैसे
कोई पुकार रहा हो
किसी को;
कभी के भूले भटके को....
पर ना मालूम
सोते ख्यालों की इस भीड़ में
सुन रहा है कौन
किसकी आवाज़ ....
चाहता है कौन
किसका साथ
गहराती रात के सूनेपन में
अक्सर मिल जाते हैं
सुकून के
दो चार पल
जब हो जाती है मुलाक़ात
आसमान से बरसती
चाँदनी से या
चमकते तारों से
फिर आज....
अचानक यह आवाज़
जो है तो अपरिचित
फिर भी
न जाने क्यों
परिचित सी लगती है
हर बार
भटकता है
मन के भीतर का मन
पहचानने को
वह आवाज़ है ...
या कोई साज़
गहराती रात के सूनेपन में।
~यशवन्त यश©
सरसराती आ रही है
एक आवाज़
कि कहीं से
झुरमुटों की ओट से
या किसी और छोर से
जैसे
कोई पुकार रहा हो
किसी को;
कभी के भूले भटके को....
पर ना मालूम
सोते ख्यालों की इस भीड़ में
सुन रहा है कौन
किसकी आवाज़ ....
चाहता है कौन
किसका साथ
गहराती रात के सूनेपन में
अक्सर मिल जाते हैं
सुकून के
दो चार पल
जब हो जाती है मुलाक़ात
आसमान से बरसती
चाँदनी से या
चमकते तारों से
फिर आज....
अचानक यह आवाज़
जो है तो अपरिचित
फिर भी
न जाने क्यों
परिचित सी लगती है
हर बार
भटकता है
मन के भीतर का मन
पहचानने को
वह आवाज़ है ...
या कोई साज़
गहराती रात के सूनेपन में।
~यशवन्त यश©
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। । होली की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। । होली की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteअजीब सी कस्मकस
ReplyDeleteaise hota hai kabhi kabhi koi dur ho kar bhi paas nazar aata hai ...
ReplyDeleteman ke bheetar man ki aawaz
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteयह आवाज लगती है दूर से आती...पर नजदीक से भी नजदीक है..मन के भीतर का मन...बहुत सुंदर पंक्तियाँ..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteसकारात्मक रचना
हार्दिक शुभकामनायें
कोमल भावों कि सुंदर रचना...
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
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