वक़्त के कत्लखाने में
उखड़ती साँसों को
साथ लिये
जिंदगी
बार बार देख रही है
पीछे मुड़कर
और कर रही है
खुद से कई सवाल
जिनका जवाब
आसान नहीं
तो मुश्किल भी नहीं है
मगर
आँखों के सामने
हालातों की तस्वीर
उलझी हुई है इस कदर
कि संभव नहीं रहा
पहचानना
और ढूंढ निकालना
सही -सच्ची बातों को
'क्या 'क्यों' और 'कैसे'
अब बनने वाले हैं भूत
भविष्य की
परिभाषा रच कर
~यशवन्त यश©
उखड़ती साँसों को
साथ लिये
जिंदगी
बार बार देख रही है
पीछे मुड़कर
और कर रही है
खुद से कई सवाल
जिनका जवाब
आसान नहीं
तो मुश्किल भी नहीं है
मगर
आँखों के सामने
हालातों की तस्वीर
उलझी हुई है इस कदर
कि संभव नहीं रहा
पहचानना
और ढूंढ निकालना
सही -सच्ची बातों को
'क्या 'क्यों' और 'कैसे'
अब बनने वाले हैं भूत
भविष्य की
परिभाषा रच कर
उखड़ती साँसों को
साथ लिये
जिंदगी
निकल रही है
अंतहीन सफर पर।
बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteवाह: बहुत बढ़िया ! शुभकामनाएं
ReplyDeleteप्रभावी.....
ReplyDeleteक्या, क्यों और कैसे के जवाब किसी को नहीं मिलते...यहाँ, जब तक सवाल पूछने वाले से मुलाकात नहीं हो जाती..
Deleteबहुत खूब..बेहतरीन प्रस्तुति..
ReplyDelete'क्या 'क्यों' और 'कैसे'
ReplyDeleteअब बनने वाले हैं भूत
sach kaha.... aur bhavishya mein ye hi sawal raah ko naya mod dete hain.
achhi rachna
shubhkamnayen
superb !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या क्यों और कैसे में उलझी ज़िन्दगी जानती है कि जवाब नहीं कोई, मगर... प्रभावशाली रचना, बधाई.
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