छोटी सी ज़िंदगी का
बहुत लंबा है सफर
चलो कहीं चलें
इन अँधेरों से निकल कर
कहीं जल रही है लौ
स्याह तस्वीरों की आँखों में
उलझे हैं जिनके होठ
बहते जीवन की बातों में
माना कि कठिन है
यहाँ काँटों भरी डगर
फिर फूल भी मिलेंगे
आगे कहीं बिखर कर
मिलेगा सुकुं रूह को
अब साहिल पर ही थम कर
चलो कहीं चलें
इन अँधेरों से निकल कर ।
~यशवन्त यश©
बहुत लंबा है सफर
चलो कहीं चलें
इन अँधेरों से निकल कर
कहीं जल रही है लौ
स्याह तस्वीरों की आँखों में
उलझे हैं जिनके होठ
बहते जीवन की बातों में
माना कि कठिन है
यहाँ काँटों भरी डगर
फिर फूल भी मिलेंगे
आगे कहीं बिखर कर
मिलेगा सुकुं रूह को
अब साहिल पर ही थम कर
चलो कहीं चलें
इन अँधेरों से निकल कर ।
~यशवन्त यश©
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (19-08-2014) को "कृष्ण प्रतीक हैं...." (चर्चामंच - 1710) पर भी होगी।
--
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शाब्दिक सुंदरता मनमोहक
ReplyDeleteचलो चलते हैं :)
ReplyDeleteबेहद सकारात्मक सोच को बयां करती उत्कृष्ट रचना।।।
ReplyDeletebahut sunder abhivyakti.....ummeed bani rahe..koshishe jaari rahni chahiye
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
सादर --
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------
असतो मा सद्गमय...अंधकार से प्रकाश की ओर जाना ही जीवन है...धरा के अंधकार में छुपा बीज एक दिन प्रकाश में प्रवेश करता है और चल पड़ता है...आकाश की ओर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..शुभकामनाएं सहित..
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