ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है
इससे कोई बात न करना
चार दिन की महफिल में
खुद को बरबाद न करना ।
कुछ पल का है हँसना रोना
कुछ पल की सब बातें हैं
बाकी तो बस तनहाई में
यूं कटते दिन और रातें हैं ।
चेहरे से सब अपने लगते
भीतर से सब पराए हैं
अपनी अपनी कहने सुनने
कई रूप धर कर आए हैं ।
कागज़ कलम हैं सच्चे साथी
और किसी से आस न रखना
आस्तीन के साँप बहुत हैं
उनको अपने पास न रखना ।
-यश ©
06/04/2018
इससे कोई बात न करना
चार दिन की महफिल में
खुद को बरबाद न करना ।
कुछ पल का है हँसना रोना
कुछ पल की सब बातें हैं
बाकी तो बस तनहाई में
यूं कटते दिन और रातें हैं ।
चेहरे से सब अपने लगते
भीतर से सब पराए हैं
अपनी अपनी कहने सुनने
कई रूप धर कर आए हैं ।
कागज़ कलम हैं सच्चे साथी
और किसी से आस न रखना
आस्तीन के साँप बहुत हैं
उनको अपने पास न रखना ।
-यश ©
06/04/2018
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-04-2017) को "करो सतत् अभ्यास" (चर्चा अंक-2934) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
ReplyDeleteदुनिया तो सदा से ऐसी ही है, तभी तो कबीरदास कह गए हैं, कुछ लेना न देना मगन रहना
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